Saturday, April 21, 2012

Cow based Sustainable agricultural development by Janabharati, Kolhapur, Maharashtra


‘जनभारती’ द्वारा गोमाता केंद्रित खेती का आर्थिक सफल प्रयोग

स्रोत: News Bharati      तारीख: 4/18/2012 6:20:16 PM
$img_title‘प्रकृति का वरदहस्त प्राप्त महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में गन्ना और धान प्रमुख फसलें है. देश में हुई हरित क्रांति के लाभ बहुत प्रमाण में इस जिले के गॉंव-गॉंव तक पहुँचे है. नया तंत्रज्ञान, रासायनिक खाद और कीटनाशक तथा उन्नत बिजों का प्रयोग किसानों ने आरंभ किया. उत्पादन बढ़ने से किसान आनंदित हुए; लेकिन कुछ ही समय में इसका विपरित परिणाम देखने को मिला. भरपूर उत्पादन की आशा में आधुनिक पद्धति के नाम पर खेती में रासायनिक खाद का अंधाधुंद  प्रयोग होने लगा. रसायनों कीअति मात्रा के कारण खेती की उर्वरा शक्ति घटी. जैसे जैसे समय बीतता गया, उत्पादन और भी घटता गया; तब किसान जाग उठा और इस समस्या का हल ढूढने लगे.
$img_titleकिसान समस्याग्रस्त होने से गॉंव की व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई. उस समय, कोल्हापुर के ‘जनभारती न्यास’ ने उन्हें एक आसान उपाय- हर घर में कम से कम एक देसी गाय पालना- बताया.
१९९७-९८ को कोल्हापुर में प्रबोधन परिषद हुई थी. उसमें प्रमुख अतिथि के रूप में बोलते हुए विख्यात समाजसेवक नानाजी देशमुख ने कहा था कि जब तक खेती, किसान और गॉंव स्वावलंबी और समृद्ध नहीं बनेंगे, तब तक इस देश का भवितव्य उज्ज्वल नहीं हो सकता. इस आधार पर ही दिसंबर १९९९ में ‘जनभारती न्यास’ की स्थापना की गई थी.
नानाजी ने ऐसी भी सलाह दी कि, गाय के पंचगव्य से खेती जुड़ी है. गाय को केंद्रबिंदु मानकर पर्यावरण हितैषी खेती करें.
$img_titleफिर ‘जनभारती न्यास’ की सलाह से परंपरागत खेती के कालबाह्य चीजों को त्याग कर खेती आरंभ हुई. रासायनिक खाद के बदले सेंद्रीय खाद का प्रयोग शुरू हुआ. गोबर खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति कायम रहती है. इसलिए रासायनिक खाद के कारण उर्वरा शक्ति खो चुकी खेती में गाय के गोबर का खाद डाला गया. अन्य भी उपाय किए गए.
फसल लेने के लिए खेत में का कूडाकचरा जलाया जाता था. फसलों में का खतवार बाहर फेंका जाता था. लेकिन अब किसानों ने अपना मन बदला. खेत में का जलाया जानेवाला, या फेंक दिया जाने वाला, फसलों के अवशेषों और पत्तियों को कचरा अब खेत में ही दबा दिया जाने लगा. इसके बहुत अच्छे परिणाम दिखने लगे. गाय के गोबर खाद से खेती की उर्वरकता बी बढ़ी. खेत में दबाया गया कचरा खेत की मिट्टी में मिलने के कारण मिट्टी का पोषण हुआ; उसकी जलधारण-क्षमता बढ़ी. गाय के गोबर और गोमूत्र से बने कीटनाशकों के प्रयोग से, फसलों पर रासायनिक कीटनाशकों के दुष्परिणाम टले.
$img_titleआगे चलकर किसानों ने गन्ने की बुआई में भी नई तकनीक अपनाई. गन्ने की पारियों पर उगी आँख (अंकुर) को क्यारी में लगाया जाता है. क्यारी में उनके पौधे तैयार होने पर उन्हें जड़ों सहित उखाडकर फिर खेत में बोया जाता है. पहले, इसके लिए आँख उगी पूरी पारी ही निकाल ली जाती थी. अब क्यारी में गन्ने की आँख लगाने के लिए, किसान पारी का आँख उगा हिस्सा ही काटकर निकालते है और गन्ने की हर पारी पर आँख फूटने के लिए, गन्ना बड़ा होने पर उसके छोर के पत्ते तोड देते है. इससे गन्ने की बचत होती है. गन्ने की फसल का पैसा हाथ आने के लिए करीब १४ माह का समय लगता है. इस दौरान गन्ने की फसल में अन्य दो-तीन फसलें (इंटरक्रॉप) ली जाती है. इससे किसान के पूँजी और नियमित खर्च की व्यवस्था हो जाती है.
$img_titleइस नये प्रयोग से किसानों का उत्पादन बढा और उत्पाद लागत काफी मात्रा में कम हुयी. इस कारण किसान प्रोत्साहित हुए. वे और अधिक और नये प्रयोग करने के लिए सामने आये. गन्ना और धान के खेती में खाली जगह पर अब वे फलों और सब्जियों का उत्पादन ले रहे है. इस कारण किसानों के हाथ में सालभर पैसा रहने लगा. रोजमर्रा की जरूरतों के लिए घरमें ही सब्जी इत्यादी फसल लेना उन्होने आरंभ किया. इससे बचत होने लगी. सही मायने में यहॉं का किसान चिंतामुक्त हो गया.
इस प्रयोगशीलता से ही कागल तहसील के वनमोर गॉंव के प्रगतिशील किसान- तानाजी निकम ने खुद के निरीक्षण और प्रयोग से खेती के व्यवस्थापन की एक नयी पद्धती खोज निकाली. उनके इस मेहनत को इतना यश मिला की, उनके द्वारा धान की फसल का दुनिया का सबसे ऊँचा पौधा उगाया गया और इसके ‘गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड’ में दर्ज किया गया. वे बताते है कि, सेंद्रिय खाद का उपयोग कर ही मैंने यह रिकार्ड हासिल किया है.
$img_titleइस प्रकार गाय को केंद्रबिंदु मानकर की गई सेंद्रिय खेती ने यहॉं के किसानों को केवल रासायनिक खेती के दुष्परिणामों से छुटकारा ही नहीं दिलाया, उन्हें समृद्ध जीवन की राह भी दिखाई है. एक किसान ने तो गोमूत्र अर्क बनाने का भी उद्योग शुरू किया है. पंचगव्य से साबुन बनाने का प्रयोग भी सफल रहा है.
कई किसानों ने अब गोपालन के साथ कुक्कुट-पालन, भेड-पालन और मधुमख्खी-पालन सरीखे पूरक उद्योग भी शुरू किए है. महिलाओं ने बचत समूह स्थापन कर दुग्ध-व्यवसाय के साथ अन्य लघु उद्योग आरंभ किए है. अब यहॉं की महिलाएँ भी आर्थिक दृष्टीसे स्वावलंबी बन गयी है. जनभारती न्यास ने महिलाओं के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा है. उनके लिए नियमित रूप से स्वास्थ्य शिबिर आयोजित होते है. यहॉं की वीरान जगह पर करवंद (एक खट्टा फल) का जंगल दिखाई देता है. यहॉं की महिलाएँ अब इस करवंद का शरबत बनाकर बेचती है. इस स्वास्थ्यवर्धक शरबत के बिक्री से काफी लाभ मिल रहा है.
हर घर में एक देसी गाय पालने के आग्रह से, कुछ वर्ष पूर्व कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था की सफलता पर का विश्‍वास खो रहे देहातों में फिर इस अर्थव्यवस्था पर का विश्‍वास जाग उठा है. गोमाता ने खेती को नवसंजीवनी देते हुए रोजगारनिर्मिती भी कर दिखायी है. लोगों को निरामय बनाया है. गोमाता को कामधेनु के नाम से क्यों जाना जाता है, यह इस क्षेत्र के इस परिवर्तन से ध्यान में आता है.    

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