Monday, December 10, 2012

Such Personality lives now

दुनिया में ऐसे भी लोग है – मा.गो. वैद्य




(१) एक आय. एस. अधिकारी और १०४ किलोमीटर लंबा रस्ता
http://www.pravakta.com/wp-content/uploads/2012/12/download.jpgउसका नाम है आर्म्सस्ट्रॉंग पामे. वो नागालँड में के तामेंगलॉंग इस जिला स्थान पर डिव्हिजनल मॅजिस्ट्रेट है. उसकी जनजाति का नाम है झेमे’. इस जनजाति से आय. ए. एस. उत्तीर्ण होने वाला वह पहला युवक है. २००५ में दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से उसने पदवी प्राप्त की थी.
उसने मणिपुर कोनागालँड और असम से जोडने वाला १०० किलोमीटर लंबा रास्ता बनाने का निश्‍चिय किया. वस्तुत: केन्द्र सरकार ने इस रास्ते के निर्माण के लिए १९८२ में ही १०१ करोड़ रुपयों का प्रवधान किया था. लेकिन वह कागज पर ही धरा रहा. इस क्षेत्र में,मोटर के लिए रस्ता नहीं होने के काराणटायफाईड या मलेरिया के रुग्णों को रुग्णालय में दाखिल कराने के लिए पैदल ही ले जाना पड़ता है. करीब के रुग्णालय में भी दाखिल कराना हो तो दो दिन पैदल चलकर जाना पड़ता है. गंभीर रुग्णों को बॉंस से बने स्ट्रेचर पर ले जाते है. स्वाभाविक ही बहुत थोडे रुग्णतंदुरस्त होकर लौटते है.
इस क्षेत्र मेंसब ॠतुओं मेंमोटर से यातायात हो सके ऐसा रास्ता निर्माण करना अत्यंत कठिन काम था. सरकार की ओर से सहायता मिलने की आशा समाप्त होने के बादपामे ने अपने परिवार और सहानुभूतिदारों की सहायता से ही यह काम करने का निर्धार किया. आर्मस्ट्रॉंग का बड़ा भाईदिल्ली विश्‍वविद्यालय में प्राध्यापक है. उसने छोटे भाई के उद्दिष्ट के लिए सहायता देने का निश्‍चय किया. उसने और उसकी पत्नी ने अपना एक माह का वेतन आर्म्सट्रॉंग को दिया. स्वयं आर्म्सट्रॉंग ने अपना पॉंच माह का वेतन दिया. और उसकी मॉं नेउसे पति के निधन के बाद जो पेन्शन मिलती हैउसमें से एक माह की पेन्शन दी. आर्म्सट्रॉंग के छोटे भाई को हाल ही में नौकरी मिली है. उसने भी अपना एक माह का वेतन दिया.
इस प्रकार आर्म्सट्रॉंग ने चार लाख रुपये इकट्ठा किये और रास्ते का काम शुरु किया. एक बुलडोझर किराये से लियाऔर मिट्टी खोदने की दो मशीन खरीदी. लेकिन इतने से काम नहीं चल सकता था. उन्होंने इंटरनेट की सहायता ली. एक विज्ञापन दियाऔर चमत्कार हुआ. केवल तीन दिनों में एक लाख २० हजार रुपये जमा हुए. उनमें जैसे ५० रुपये देने वाले थेवैसे एक हजार डॉलर देने वाला भी एक था. एक हजार डॉलर मतलब ५० हजार रुपयों से अधिक राशि. पास-पड़ोस के देहातों के लोगों ने भी सहायता का हाथ बढ़ाया. उनमें से कुछ रास्ते के काम पर मजदूरी करने वालों के भाजन की व्यवस्था करते हैतो अन्य कुछउनके निवास की व्यवस्था देखते है. कुछ लोग श्रमदान भी करते है.
आर्म्सट्रॉंग बाताते हैहमने कोई ठेकेदार नियुक्त नहीं किया. लोग ही स्वयं काम करते है. लेकिन अनुदान प्राप्त करने के लिए दिल्ली,पुणेबंगलूरचेन्नईगुवाहाटी आदि स्थानों पर निधि संकलन केन्द्र बनाए है. कॅनडाइंग्लैंडअमेरिका आदि देशों के अप्रवासी भारतीय भी मदद कर रहे हैं.
इस रास्ते का नाम है तामेंगलॉंग-हाफलॉंग रोड. यह रास्ता नागालँडअसम और मणिपुर को जोड़ेगा. गत अगस्त में इस रास्ते का काम शुरु हुआ. बारिश के कारण कुछ दिन काम बंद रखना पड़ा. अब तक ७० किलोमीटर लंबा रास्ता बन चुका है.
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(२) युगपुरुष’?
उस व्यक्ति का नाम है कल्पाणसुंदरम्. नाम के अनुसार ही उसकी कृति है. कल्याणकारक और सुंदर. ग्रंथपाल के पद पर उन्होंने ३६ वर्ष नौकरी की. नौकरी करते समय वे पूरा वेतन जरुरतमंदों की सहायता के लिए खर्च करते थे और अपनी उपजीविका के लिएनौकरी के बाद एक होटल में काम करते थे. सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपनी पूरी पेन्शन भी जरुरतमंदों को अर्पण की.
अमेरिका ने उनके इस लोकविलक्षण दातृत्व की दखल ली. उन्हें युगपुरुष’ (मॅनऑफ द मिलेनियम्) किताब देकर उनका गौरव किया. इस किताब के उन्हें तीस करोड़ रुपये मिले. वह राशि भी उन्होंने लोगों को बॉंट दी. उनका यह औदार्य देखकर विख्यात तामिल अभिनेता रजनीकांत ने कल्याणसुंदरम् को पिता मानकर गोद लिया है!
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(३) दृष्टिहीन लेकिन द्रष्टा
हरिहरन् अय्यर. जन्मांध है. आयु ५० वर्ष से अधिक. वह केरल के मूल निवासी है. पढ़ाई कोलकाता में हुई. रामकृष्ण मिशन द्वारा चलाए जाने वाले अंध विद्यालय में. उन्होंने वहीं विवेकानंद महाविद्यालय से बी. ए. की पदवी ली. उस परीक्षा में वह विश्‍वविद्यालय में प्रथम आये. वे अनेक भाषाए जानते है. तामिल और मलियालम तो जानते ही हैलेकिन बंगाली में पढ़ने के कारण बंगाली भी जानते है. हिंदी और अंग्रेजी के साथ आसामी और उडिया भी बोलते है. शांतिनिकेतन में सतारवादन सिखा. उनकी मॉं कार्नटक संगीत की जानकार है. हरिहरन् भी कर्नाटक संगीत जानते है. फिलहाल वे नेवेली लिग्नाईट कार्पोरेशन के कार्यालय में स्वागाताधिकारी (रिसेप्शनिस्ट) का काम करते है. और फुरसत में पड़ोस में रहने वाले बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते है.
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(४) षण्मुखम् और सूर्यशक्ति
तामिलनाडु के कोयमतुर जिले में ओडापालयम् नाम का एक छोटा देहात है. उस देहात के सरपंच है श्री षण्मुखम्. षण्मुखम् मतलब कार्तिकेय. गत १५ वर्षों से वे ही वहॉं के सरपंच है. उनके ध्यान में आया कि ग्राम पंचायत के आय में की ४० प्रतिशत राशि सड़क पर लगे दियों की बिजली पर खर्च होती है. उन्होंने तय किया कि सड़क के दिये सौर ऊर्जा से चलाए जाएंगेऔर उन्होंने यह योजना सफल कर दिखाई. वे यहीं नहीं रुके. गॉंव के समीप एक पवनचक्की शुरु की. इसके लिए कर्ज लिया. इस पवनचक्की से प्रतिवर्ष ६.७५ किलो वॅट बिजली निर्माण होती है. और ग्रापंचायत यह अतिरिक्त बिजली विद्युत मंडल को बेचती है! इस आय से ग्रापंचायत नेपवनचक्की के लिए लिया पूरा कर्ज चुकता किया है. हम विद्युत मंडल से बिजली खरीदते हैऔर ओडापालयम् ग्रामपंचायत विद्युत मंडल को बिजलीबेचती है.
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(५) उल्लेखनीय
यह चार लड़कियों की कहानी है. वे चारों दिल्ली के पड़ोस में उत्तर प्रदेश में के नोएडा शहर में रहती है. चारों १२ वी में पढ़ती है. लेकिन वे केवल अपने विद्यालय में पढ़ती नहीं हैउन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने का व्रत लिया है. उनके नाम है अक्षिताअंबारागिनी और सौम्या.
शनिवार और रविवार कोदोपहर तीन से पॉंच तकवे पास में रहने वाले गरीबों के बच्चों को पढ़ाती है. इन बच्चों की संख्या -उनमें लड़कियॉं भी है – अब पच्चीस हुई है. उन बच्चों के पिता मजदूरी करते है या रिक्षा चलाते है. उनकी माताए पास-पड़ोस के घरों में कपड़े-बर्तन धोने का काम करती है. अधिकांश बच्चे दस-ग्यारह वर्ष के है. गरीबी के कारणउनके माता-पिता उन्हें शाला में नहीं भेज सकते. इस कारण वे दिन भर गली-कुचों में या रास्तों पर भटकते रहते है.
पहले तो इन बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके माता-पिता का विरोध था. महिलाए कहती थीये शाला में गयेतो घर के छोटे बच्चों का ध्यान कौन रखेगाअक्षिता ने उन्हें समझाया. बताया कि पढ़ने के लिए पैसे नहीं देने होगे. यह शनिवार-रविवार की शाला अक्षिता के घर ही लगती है. वहॉं उसकी तीन सहेलियॉं भी आती है. वेे चारों ही संपन्नसुखवस्तु परिवारों से आती है. लेकिन उन्हें अमीरी का घमंड नहीं है.
अक्षिता का मानना है किइन बच्चों को शाला में दाखिल कर योग्य शिक्षा देना आवश्यक है. लेकिन उन्हें शाला में प्रवेश दिलाना मुश्किल है. कारण है उनकी आयु. लगातार प्रयास करने के बाद नोएडा सेक्टर ३६ के सरस्वती बालिका मंदिर में पॉंच बालिकाओं को प्रवेश मिला. इन बालिकाओं का शाला का शुल्क अक्षिता ही देती है. उसे घर से जो पॉकेट मनी’ मिलता हैउसमें से.
इन बच्चों को साक्षर बनाने के साथ हीये लड़कियॉं उन्हें योगचित्रकला आदि भी पढ़ाती है. क्या अब भी कोई कह सकता है कि आज का युवा वर्ग गैरजिम्मेदार और बहका हैऐसा आरोप करने के पूर्वलोगों ने अपने घरों के वातावरण का विचार करना आवश्यक है. वातावरण अच्छा होगातो अच्छे संस्कार होगे और फिर उन घरों में भी अक्षिता निर्माण होगी.
(पाञ्चजन्य१६ सितंबर से साभार)
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बिना दरवाजों के घरों का गॉंव
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शनि शिंगनापुर नाम का एक गॉंव है. ‘शिंगनापुर’ नाम के साथ शनि’ उपपद लगाने कारण यह किउस गॉंव में शनि का प्रसिद्ध मंदिर है. वह मंदिर बहुत सुंदर और भव्य हैकेवल इसलिए ही वह प्रसिद्ध नहीं है. उसका प्रभाव ऐसा है कि,वहॉं के शनि देवता पूरे गॉंव की रक्षा करते है. इस कारण उस गॉंव में के घरों को दरवाजें नहीं है. मैं करीब तीस-पैंतीस वर्ष पूर्व वहॉं गया था. यह तब की बात है. आज क्या परिस्थिति हैयह मुझे पता नहीं. लेकिन अब इस शिंगनापुर की याद आने का कारण यह है किऐसा ही एक गॉंव तामिलनाडू में के रामनाथपुरम् जिले में होने की जानकारी मिली है. उस गॉंव का नाम है मीतांकुलम्’. केवल १३२ घरों का गॉंव. गरीबों की बस्ती. सब घरों के छप्पर घास के बने है. एक भी घर को दरवाजा नहीं है. किसी ने घर को दरवाजा लगाया तो ग्रामदेवता मतलब शिवम् पुनियप्पा स्वामीका कोप होता हैऐसा मानते है. यह देवता एक पेड़ के नीचे खुलें में स्थित है.यह देवता ही गॉंव की चोरों से रक्षा करती हैऐसी लोक-भावना है. देवता के इर्द-गिर्द अनेक घंटियॉं लटकी है. दिन भर उन घंटियों की आवाज होते रहती है. कारण भक्तों का अखंड तॉंता लगा रहता है.
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भारत विरुद्ध इंडिया
जालंधर से प्रकाशित होेने वाले पथिक संदेश’ नियतकालिक के अक्टूबर माह के अंक में भारत और इंडिया की तुलना करने वाली एक मजेदार निम्न कविता प्रकाशित हुई है -
भारत इंडिया
भारत में गॉंव हैगली हैचौबारा है. इंडिया में सिटी हैमॉल हैपंचतारा है.
भारत में घर हैचबूतरा हैदालान है. इंडिया में फ्लैट और मकान है.
भारत में काका हैबाबा हैदादा हैदादी है. इंडिया में अंकल आंटी की आबादी है.
भारत में खजूर हैजामुन हैआम है. इंडिया में मैगीपिज्जामाजा का नकली आम है.
भारत में मटके हैदोने हैपत्तल है. इंडिया में पोलिथीनवाटर व आईन की बोटल है.
भारत में गाय हैगोबर हैकंडे है. इंडिया में सेहतनाशी चिकन बिरयानी अंडे है.
भारत में दूध हैदही हैलस्सी है. इंडिया में खतरनाक विस्कीकोकपेप्सी है.
भारत में रसोई हैआँगन हैतुलसी है. इंडिया में रूम हैकमोड की कुर्सी है.
भारत में कथडी हैखटिया हैखर्राटे हैं. इंडिया में बेड हैडनलप है और करवटें है.
भारत में मंदिर हैमंडप हैपंडाल है. इंडिया में पब हैडिस्को हैहॉल है.
भारत में गीत हैसंगीत हैरिदम है. इंडिया में डान्स हैपॉप हैआईटम है.
भारत में बुआ हैमौसी हैबहन है. इंडिया में सब के सब कजन है.
भारत में पीपल हैबरगद हैनीम है. इंडिया में वाल पर पूरे सीन है.
भारत में आदर हैप्रेम हैसत्कार है. इंडिया में स्वार्थनफरत हैदुत्कार है.
भारत में हजारों भाषा हैंबोली है. इंडिया में एक अंग्रेजी एक बडबोली है.
भारत सीधा हैसहज हैसरल है. इंडिया धूर्त हैचालाक हैकुटिल है.
भारत में संतोष हैसुख हैचैन है. इंडिया बदहवासदुखीबेचैन है.
क्योंकि 
भारत को देवों नेवीरों ने रचाया है. इंडिया को लालचीअंग्रेजों ने बसाया है.
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(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

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