Tuesday, February 26, 2013

Sangha and seva


संघ और सेवा

संघ मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. उसे समझ पाना जरा कठिन है. कारणविद्यमान संस्थाओं के नमूने में वह नहीं बैठता. उसके नाम का हर शब्द महत्त्च का है. सप्रयोजन है. तथापि पहला राष्ट्रीय’ शब्द उन सबमें सर्वाधिक महत्त्व का हैऐसा मुझे लगता है. निरपेक्ष भाव से काम करने वाले अनेक कार्यकर्ता होते है. उन्हें हम स्वयंसेवक’ कह सकते है. ऐसे कार्यकर्ताओं की कोई संस्था या समूह हो सकता है. उसे हम संघ कह सकते है. लेकिन उसमें का हर संघ’ ‘राष्ट्रीय’ मतलब राष्ट्रव्यापी होगा ही ऐसा नहीं. और, ‘राष्ट्रइस शब्द के अर्थायाम के बारे में भी संभ्रम है. दुनिया में अन्यत्र वह नहीं भी होगालेकिन हमारे देश में है. हम सहजलेकिन स्वाभिमान सेकह जाते है कि१५ अगस्त १९४७ को हमारे नए राष्ट्र का जन्म हुआ. तो १४ अगस्त को हम क्या थे? ‘राष्ट्र’ नहीं थेकुछ लोग राज्य’ को ही राष्ट्र मानते हैतो अन्य कुछदेश मतलब राष्ट्र समझते है.राज्य’ और देश का राष्ट्र से’ घनिष्ठ संबंध है. लेकिन राष्ट्र’ उनसे अलगउनसे व्यापकउनसे श्रेष्ठ होता है. देश के बिना राष्ट्र’ हो सकता हैरहा है. इस्रायल’ यह उसका उदाहरण है. १८०० वर्ष उन्हें देश नहीं था. लेकिन हमारा देश और हम एक राष्ट्र है मतलब ज्यू राष्ट्र है. इसलिये दुनिया में कहीं भी रहने वाला ज्यूवह हमारा बंधु हैयह वे भूले नहीं. मतलब अपना राष्ट्र वे भूले नहीं. फिर राष्ट्र मतलब क्या होता हैराष्ट्र मतलब लोग होते है. राष्ट्र मतलब समाज होता है. किन लोगों का राष्ट्र बनता है या लोगों का राष्ट्र बनने की क्या शर्ते है उसका विवेचन एक स्वतंत्र विषय है. आज वह प्रस्तुत नहीं. मुझेयहॉंयह अधोरेखित करना है किसंघ के सामने सततअव्याहतराष्ट्र का ही विचार होता है. मतलब अपने लोगों काअपने समाज काविचार होता है.   

सेवा कार्य का प्रारंभ
हमारे इस राष्ट्र में जो समाज रहता हैउस संपूर्ण समाज का जीवनस्तर समान नहीं है. कुछ लोग बहुत गरीब है. अशिक्षित है. नए आधुनिक जीवन से उनका परिचय ही नहीं. वहॉं आरोग्य नहीं. उसकी व्यवस्था भी नहीं. वे सब हमारे ही समाज के लोग है. मतलब वे हमारे राष्ट्र के घटक है. क्या उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए किहम भी इस राष्ट्र के घटक है. इस मौलिक बात का हमारे समाज बंधुओं को न ज्ञान था और न भान. संघ ने यह करा देने की ठानीऔर संघसंस्थापक डॉ. के. ब. हेडगेवार जी के जन्म शताब्दी वर्ष मतलब १९८९ से संघ ने यह काम हाथ में लिया. संघ में सेवा विभाग’ शुरु हुआ. इसके पूर्व संघ के स्वयंसेवक व्यक्तिगत स्तर पर सेवा कार्य करते थे. छत्तीसगढ़ में  जशपुर का वनवासी कल्याण आश्रम १९५२ में शुरु हुआ था. वह एक स्वयंसेवक ने ही शुरु किया था. बिलासपुर जिले के चांपा गॉंव में भारतीय कुष्ठ धामएक स्वयंसेवक ने ही शुरु किया था. संघ स्वयंसेवकों के व्यतिरिक्त अन्य महान् पुरुषों ने भी सेवा कार्य से लौकिक प्राप्त किया है. कुष्ठरोग निवारण के संदर्भ में अमरावती के शिवाजीराव पटवर्धन,वरोडा के बाबासाहब आमटेवर्धा के सर्वोदय आश्रम के कार्यकर्ताओं के नाम सर्वत्र विख्यात है. मेरे मित्र शंकर पापळकर का सेवा प्रकल्पमूक-बधिर और मतिमंद बालकों के संदर्भ में है. मुझे याद है कि पापळकर का अमरावती जिले के वझ्झर का प्रकल्प मैंने दो-तीन बार देखा है. विलक्षण कठिन है उनका काम. नाली मेंकचरा कुंडी मेंरेल प्लॅटफार्म पर छोड दिये अनाथअपंग नवजात शिशुओं के वे पिता’ बने है. उस आश्रम में का दिल को छूने वाला एक प्रसंग आज भी मुझे याद है. मैं भोजन करने बैठा था,उन्होंने एक लड़के को मेरे सामने लाकर बिठायाऔर मुझसे कहाइसे एक निवाला अपने हाथ से खिलाईये. उस लड़के के दोनों हाथ नही थे. मैंने उसे एक निवाला खिलाया. मेरा दिल इतना भर आया था किमुझे आँसू रोकना बहुत कठिन हुआ. मुझे वह एक निवालाहजार लोगों को अन्नदान करने के बराबर लगता है.

सेवा भारती का विस्तार
मुझे यह बताना है कियह सब वैयक्तिक प्रकल्प प्रशंसनीय हैफिर भी उनके विस्तार और क्षमता को भी स्वाभाविक मर्यादा है. संघ ने वर्ष १९८९ मेंसेवा कार्य को अखिल भारतीय आयाम दिया. अपनी रचना में ही सेवा विभाग’ नाम से एक नया विभाग निर्माण किया. उसके संचालन के लिए सेवा प्रमुख’ पद की निर्मिति करएक श्रेष्ठ प्रचारक को उसका दायित्व सौपा. स्वयंसेवकों द्वारा व्यक्ति स्तर पर जो काम शुरु थेवह सब इस विशाल छत्र के नीचे आए. जशपुर का वनवासी कल्याण आश्रम, ‘अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम’ बना. और केवल वनवासी क्षेत्र के ही नहींअन्य सब क्षेत्रों में के सेवा कार्यो के लिए एक व्यवस्था निर्माण की गई. वह व्यवस्था सेवा भारती’ के नाम से जानी जाती है. इस सेवा भारती के कार्यकलापों का गत दो दशकों में इतना प्रचंड विस्तार हुआ है किडेढ लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चल रहे है.

एक अनुभव
हमारे समाज में जो दुर्बलउपेक्षित और पीडित घटक हैउन पर सेवा भारती’ ने अपना लक्ष्य केंद्रित किया है. उनमें केजंगल मेंपहाड़ों मेंदरी-कंदराओं में रहने वालों के लड़के-लड़कियों के लिए एक शिक्षकी शालाए शुरु की. उस शाला का नाम है एकल विद्यालय’. गॉंव का ही एक युवक इस काम के लिए चुना जाता है. उसे थोड़ा प्रशिक्षण देते है और वह वहॉं के बच्चों को सिखाता है. संपूर्ण हिंदुस्थान में ऐसे एकल विद्यालय कितने होगेइसकी मुझे कल्पना नहीं. लेकिन अकेले झारखंड आठ हजार एकल विद्यालय है. करीब १०-१२ वर्ष पहले की बात है. जशपुर जाते समय रास्ते मेंझारखंड का एक एकल विद्यालय देखने का मौका मिला. हमारे लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. १० से १४ वर्ष आयु समूह के ५५ बच्चें और उनके पालक उपस्थित थे. उनमें २३ लड़कियॉं थी. उन्होंने गिनती सुनाईपुस्तक पढ़कर दिखाएगीत गाए. गॉंव में शाला थी. मतलब इमारत थी. शिक्षक भी नियुक्त थे. लेकिन विद्यार्थी ही नहीं थे. मैंने एक देहाती से पूछाआपके बच्चें उस शाला में क्यों नहीं जातेउसने कहावह शाला दोपहर १० से ४ बजे तक रहती है. उस समय हमारे बच्चें जानवर चराने ले जाते है. सरकारी यंत्रणा यह क्यों नहीं समझती किशाला का समय विद्यार्थींयों की सुविधा के अनुसार रखे. यह एकल विद्यालय को सूझ सकता है कारण उसे समाज को जोडना होता है. झारखंड के यह एकल विद्यालय सायंकाल ६॥ से ९ तक चलते है. गॉंव में बिजली नहीं थी. लालटेन के उजाले में शाला चलती थीऔर शिक्षक है ९ वी अनुत्तीर्ण!

सेवा संगम
वनवासी क्षेत्र के एकल विद्यालय यह सेवा प्रकल्प का एक प्रकार है. ऐसे अनेक प्रकल्प-प्रकार है. जैसे अन्यत्र हैवैसे विदर्भ में भी है. २२ फरवरी २०१३ को इन सेवा प्रकल्प प्रकारों का एक संगम नागपुर में हुआ. रेशीमबाग में. इस संगम का नाम ही सेवा संगम’ है. इस सेवा संगम’ का उद्घाटननागपुर सुधार प्रन्यास के प्रमुखश्री प्रवीण दराडे (आयएएस)उनकी पत्नीआदिवासी विकास अतिरिक्त आयुक्त डॉ. पल्लवी दराडे और शंकर पापळकर ने किया. यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जनकल्याण समिति द्वारा आयोजित था.

मुझे ऐसी जानकरी मिली है किविदर्भ मेंकरीब साडे पॉंच सौ सेवा प्रकल्प चल रहे है. अर्थात् एक संस्था के एक से अधिक प्रकल्प भी होगे ही. इनमें से करीब ८० संस्थाओं के प्रकल्पों की जानकारी देने वाली प्रदर्शनी भी वहॉं थी.

सेवा कार्य के आयाम
फिलहाल सेवा के कुल छ: आयाम निश्‍चित किए है. १) आरोग्य २) शिक्षा ३) संस्कार ४) स्वावलंबन ५) ग्राम विकास और ६) विपत्ति निवारण.
आरोग्य’ विभाग मेंरक्तपेढीनेत्रपेढीमोबाईल रुग्णालयनि:शुल्क स्वास्थ्य परीक्षणपरिचारिका प्रशिक्षण तथा आरोग्य- रक्षक-प्रशिक्षणऍम्बुलन्स और रुग्ण सेवा के लिए उपयुक्त वस्तुओं की उपलब्धता यह काम किए जाते है. नागपुर के समीप खापरी में विवेकानंद मेडिकल मिशन द्वारा चलाया जाने वाला अस्पतालयह इस आरोग्य प्रकल्प का एक ठोस और बड़ा उदाहरण है. अब अमरावती में भी डॉ. हेडगेवार आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान’ शुरु हो रहा है. रक्तपेढीनागपुर के समान ही अमरावतीअकोला,यवतमाल और चंद्रपुर में भी है. सबका नाम डॉ. हेडगेवार रक्तपेढी’ है.

२) शिक्षा : ऊपर एकल विद्यालय का उल्लेख किया ही है. लेकिन इसके अतिरिक्तजिनकी ओर सामान्यत: कोई भूल से भी नहीं देखेगाऐसे बच्चों की शिक्षा और निवास की व्यवस्था करने वाले भी प्रकल्प है. नागपुर में विहिंप की ओर सेप्लॅटफार्म पर भटकने वाले और वही सोने वाले बच्चों के लिए शाला और छात्रावास चलाया जाता है. उसका नाम है प्लॅटफार्म ज्ञानमंदिर निवासी शाला’. फिलहाल इस शाला में ३५ बच्चें है. श्री राम इंगोले वेश्याओं के बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था देखते हैतो वडनेरकर पति-पत्नी,यवतमाल में पारधियों के बच्चों को शिक्षित कर रहे है. ये बच्चें अन्य सामान्य बच्चों की तरह शाला में जाते है. लेकिन रहते है छात्रावास में. लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग छात्रावास है. इसे चलाने वाली संस्था का नाम है दीनदयाल बहुउद्देशीय प्रसारक मंडल’. अमरावती की प्रज्ञाप्रबोधिनी’ संस्था भी पारधी विकास सेवा का काम करती है. पारधी’ मतलब अपराधियों की टोलीऐसा समझ अंग्रेजों ने करा दिया था. स्वतंत्रता मिलने के बाद भी वह कायम था. संघ के कार्यकर्ताओं ने वह दूर किया. सोलापुर के समीप यमगरवाडी’ का प्रकल्प संपूर्ण देश के लिए आदर्श है. छोटे स्तर पर ही सही यवतमाल का प्रकल्प भी अनुकरणीय हैयह मैं स्वयं के अनुभव से बता सकता हूँ. अमरावती का पारधी विकास सेवा कार्य’, यमगरवाडी के प्रणेता गिरीश प्रभुणे की प्रेरणा से शुरु हुआ है. झोला वाचनालय’ यह नई संकल्पना कार्यांवित है. इसमें थैले में पुस्तकें भरकर वाचकों को उनके घर जाकर जाती है. यवतमाल का दीनदयाल बहुउद्देशीय प्रसारक मंडल बच्चों को तंत्र शिक्षा के भी पाठ पढ़ाता है. यहॉं बच्चें च्यॉक बनाते है,अंबर चरखे पर सूत कातते है और वह खादी ग्रामोद्योग संस्था को देते है.
३) संस्कार : शाला की शिक्षा केवल किताबी होती है. परीक्षा उत्तीर्ण करना इतना ही उसका मर्यादित लक्ष्य होता है. लेकिन शिक्षा से व्यक्ति सुसंस्कृत बननी चाहिए. इस शालेय शिक्षा के साथ हर गॉंव में संघ शाखाओं द्वारा ग्रीष्म की छुट्टियों में मर्यादित कालावधि के लिएसंस्कार वर्ग चलाए जाते है. इन वर्गो में मुख्यत: झोपडपट्टी में के विद्यार्थीयों का सहभाग होता है. उन्हें कहानियॉं सुनाई जाती है. सुभाषित सिखाए जाते है. संस्कृत श्‍लोक सिखाए जाते है. २०१२ के ग्रीष्म में ऐसे संस्कार वर्गो की नागपुर की संख्या १२८ थी. इन वर्गो में श्‍लोक पठनऔर कथाकथन की स्पर्धाए भी होती है.
४) स्वावलंबन : महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से सबल बनाने की दृष्टि से उनके बचत समूह बनाए जाते है. अनेक स्थानों पर सिलाई केंद्र शुरु कर सिलाई काम सिखाया जाता है. योग्य सलाह भी दी जाती है. नागपुर में एक मातृशक्ति कल्याण केंद्र’ है. उसके द्वारा सेवाबस्ती में - बोलचाल की भाषा में कहे तो झोपडपट्टियों मेंकिसी मंदिर या घर का बाहरी हिस्सा किराए से लेकर बालवाडी चलाई जाती है. बस्ती की ८ वी या ९ वी पढ़ी युवती ही उस बालवाडी में शिक्षिका होती है. ग्रीष्म की छुट्टियों में उनके लिए १५ दिनों का प्रशिक्षण वर्ग लिया जाता है. इस केंद्र का एक, ‘नारी सुरक्षा प्रकोष्ठ’ भी है. यह प्रकोष्ठ निराधारपरित्यक्ता य संकटग्रस्त महिलाओं को आधार देनेउनके निवास और भोजन की व्यवस्था करनेतथा उन्हें कानूनी सहायता देने का काम करता है. इसी प्रकार यह संस्था दो गर्भसंस्कार केन्द्र भी चलाती है.
५) ग्राम विकास : विदर्भ में किसानों की आत्महत्या का गंभीर प्रश्‍न है. हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने संसद में बताया किअप्रेल से जनवरी इन १० माह में विदर्भ में २२८ किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों के हित के लिए सेवा भारती’ की ओर से भी काम चल रहा है. किसानों को जैविक खेती का महत्त्व समझाया जाता है. जलसंधारण की तकनीक समझाई जाती है. गौवंश रक्षा और गौपालन पर जोर दिया जाता है. गाय से मिलने वाले पंचगव्य से अनेक दवाईयॉं बनाने के प्रकल्पनागपुर जिले में देवलापार और अकोला जिले में म्हैसपुर में है. वहॉं बनाई जाने वाली औषधियॉं मान्यता प्राप्त है और उनकी बिक्री भी बढ़ रही है. यवतमाल जिले की यवतमाल-पांढरकवडा इन दो तहसिलों मेंदीनदयाल बहुउद्देशीय मंडल ने ६० गॉंव चुनकर उनमें के हर गॉंव के चुने हुए १५ - २० किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया है. तथा कपास तथा ज्वार के जैविक बीज भी उन्हें दिये है.    
६) विपत्ति निवारण :  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रवर्तित जनकल्याण समिति ने मतलब उसके कार्यकर्ताओं ने मतलब संघ के स्वयंसेवकों नेबाढ़आगभूकंप जैसी दैवी आपत्तियों के समयअपने प्राण खतरे में डालकर भीआपत्पीडितों की सहायता की है. संघ के स्वयंसेवकों का यह एक स्वभाव ही बन गया है किसंकट के समय अपने बंधुओं की रक्षा के लिए दौडकर जाना. कोई भी प्रान्त लेसर्वत्र सबको यह एक ही अनुभव आता है.

अन्य कार्य
अनचाहेछोड़ दिये अर्भकों को संभालने का काम जैसे शंकर पापळकर का प्रकल्प कर रहा हैवैसा ही काम यवतमाल के ज्येष्ठ संघ कार्यकर्ता स्वर्गीय बाबाजी दाते ने शुरु किया था. उनकी संस्था का नाम है मायापाखर’. फिलहाल इस मायापाखरमें ४ लड़के और १४ लड़कियॉं है. अनेक स्थानों पर स्वयंसेवक वृद्धाश्रम भी चला रहे है.

इस सेवाभारती के उपक्रम का उद्दिष्ट क्या हैउद्दिष्ट एक ही है कि सबकोहम समाज के एक घटक हैऐसा लगे. उनके बीच समरसता उत्पन्न हो. सबको हम एक राष्ट्र के घटक हैइसलिए हम सब एकात्म है ऐसा अनुभव हो. इस प्रकार यह सही में राष्ट्रीय कार्य है. संघ के शिबिरों में प्रशिक्षण लेकर स्वयंसेवक इस मनेावृत्ति से अपने जीवन का विस्तार कर उसे वैसा ही बनाते है. हमारे गृहमंत्री कोमाननीय शिंदे साहब कोइस निमित्त यह बताना है किसंघ के शिबिर में एकात्मएकरसएकसंध राष्ट्रीयत्व की शिक्षा दी जाती है. आतंकवाद नहीं सिखाया जाता. कृपा कर पुन: अपनी जुबान न फिसलने दे और किसी संकुचित सियासी स्वार्थ के लिए बेलगाम वचनों से उसे गंदी न करे.  

मा. गो. वैद्य
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

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