Kulpi Police Attack, Hindu-Muslim Clashes, CPIM and TMC
24 परगना जिले में कुल्पी थाने पर हमला :- वामपंथी सेकुलरिज़्म का विकृत रूप अब उन्हीं के माथे आया…
यह बात काफ़ी समय से बताई जा रही है और "सेकुलरों" को छोड़कर सभी जानते भी हैं कि पश्चिम बंग के 16 जिले अब मुस्लिम बहुल बन चुके हैं। इन जिलों के अन्दरूनी इलाके में "शरीयत" का राज चल निकला है। विगत 30 साल के कुशासन के दौरान वामपंथियों ने मुस्लिम चरमपंथियों की चरण-वन्दना करके उन्हें बांग्लादेश से घुसपैठ करवाने, उनके राशनकार्ड बनवाने और उनकी अवैध बस्तियों-झुग्गियों को वैध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पिछले 2-3 साल में पश्चिम बंग की आम जनता के साथ-साथ मुस्लिम भी वामपंथियों से नाराज़ हो गये, जिसका फ़ायदा ममता बैनर्जी ने उठाया और "सेकुलरिज़्म" की नई चैम्पियन बनते हुए तृणमूल कैडर के साथ, मुस्लिम चरमपंथियों को खुश करने, मदरसे-मदरसे और मस्जिद-मस्जिद जाकर चरण-चम्पी करके उन्हें अपने पक्ष में किया… इन मुस्लिम बहुल इलाकों में अब आये दिन की स्थिति यह है कि कोई "टुच्चा सा लोकल इमाम" भी सरकारी अधिकारियों को धमकाता है।
24 अक्टूबर 2011 की रात को को चौबीस परगना जिले के डायमण्ड हार्बर स्थित, कुल्पी थाने पर 3000 से अधिक मुसलमानों की भीड़ ने हमला कर दिया, BDO स्तर के अधिकारी को बंधक बनाकर रखा, कई पुलिसकर्मियों के सिर फ़ोड़ दिये एवं महिलाओं से बदतमीजी की। मामला कुछ यूँ है कि 23 अक्टूबर की रात को जेलियाबाटी गाँव में हिन्दू ग्रामीणों ने कुछ मुस्लिमों को हिन्दुओं के घरों में तोड़फ़ोड़ करते और महिलाओं को छेड़ते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया। आपसी संघर्ष में दो मुस्लिम अपराधियों की मौत हो गई, जबकि तीन मुस्लिमों को ग्रामीणों ने कुल्पी पुलिस थाने के हवाले कर दिया। बस फ़िर क्या था… हजारों मुस्लिमों की हथियारों से लैस भीड़ ने कुल्पी थाने तथा स्थानीय BDO के दफ़्तर को घेरकर तोड़फ़ोड़ व आगज़नी कर दी। इस दौरान प्रशासन को रोकने के लिए, राष्ट्रीय राजमार्ग 117 को हथियारों से लैस मुस्लिमों ने रोककर रखा था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, इस हमलावर भीड़ में तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता भी शामिल थे।
(चित्र में :- कुल्पी थाने में घायल ASI समीर मोडक)
असल में हिन्दू-बहुल दो गाँवों उत्तर नारायणपुर एवं गोमुखबेरिया लगातार 24 परगना जिले के चरमपंथी मुस्लिमों के निशाने पर हैं। इन दोनों गाँवों की (किसी भी आयु की) महिलाओं का गाँवों से बाहर निकलना मुश्किल है, क्योंकि बाहरी क्षेत्र में अक्सर इनके साथ मुस्लिम युवक छेड़छाड़ और गालीगलौज करते हैं, परन्तु 23 अक्टूबर को बात बढ़ गई, इसलिए हिन्दुओं ने ऐसे शोहदों की धुनाई करने का फ़ैसला कर लिया, इसी दौरान दो मुस्लिमों की मौत हुई और तीन पुलिस के हवाले हुए।
इस घटना के बाद बेशर्म वामपंथियों ने (जिन्होंने पिछले 30 साल तक इन अपराधियों को पाल-पोसकर बड़ा किया) इसका राजनैतिक फ़ायदा लेने की भौण्डी कोशिश शुरु कर दी। CPI वालों ने इस हमले को राजनैतिक संघर्ष का रंग देने का प्रयास किया और आरोप लगाया कि तृणमूल कार्यकर्ताओं ने, CPIM के नेता लालमोहन सरदार के घर पर हमला किया और लूटने का प्रयास किया (जबकि यह अर्धसत्य है, खबरों के अनुसार पूर्ण सत्य यह है कि लूटने आये तीनों मुस्लिम व्यक्ति तृणमूल कार्यकर्ता जरुर थे, लेकिन उन्हें CPIM-Trinamool से कोई लेना-देना नहीं था, वे तो एक "हिन्दू नेता" को सबक सिखाने आये थे, चाहे वह जिस पार्टी का भी होता…)। परन्तु अपनी झेंप मिटाने के लिए वामपंथी इसे दूसरा रूप देने में लगे रहे, क्योंकि वे यह स्वीकार कर ही नहीं सकते थे कि जिन मुस्लिमों को उन्होंने 30 साल तक शरण देकर मजबूत बनाया, आज वही उन्हें आँखें दिखा रहे हैं। वामपंथियों को देर से अक्ल आ रही है, वह भी तब जबकि अब उनको निशाना बनाया जाने लगा है…।
यदि यह पूरा मामला राजनैतिक होता, तो आसपास के गाँवों कंदरपुर, रामनगर-गाजीपुर, कंचनीपारा, हेलियागाछी, रमजान नगर आदि से 7000 मुस्लिमों की भीड़ अचानक कैसे एकत्रित हो गई? (यदि राजनैतिक मामला होता तो हमलावरों में सभी धर्मों के लोग शामिल होते, सिर्फ़ मुस्लिम ही क्यों?), CPIM वाले यह नहीं बता सके कि यदि मामला तृणमूल-वामपंथ के बीच का है तो थाने पर हमला करने वाले लोग "नारा-ए-तकबीर…" के नारे क्यों लगा रहे थे?
धीरे-धीरे यहाँ मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है, हिन्दू या तो अपनी ज़मीन-मकान छोड़कर मजदूरी करने दिल्ली-मुम्बई जा रहे हैं या मुस्लिमों को ही बेच रहे हैं। मुस्लिम चरमपंथियों द्वारा यह एक आजमाया हुआ तरीका है… और यह इसीलिए कारगर है क्योंकि "सेकुलरिज़्म" और "वामपंथ" दोनों का ही वरदहस्त इन्हें प्राप्त है…। "सेकुलर" नाम की मूर्ख कौम को यह बताने का कोई फ़ायदा नहीं है कि हिन्दू मोहल्लों से कभी भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी सम्पत्ति औने-पौने दाम पर बेचकर नहीं भागता।
नारायणपुर-गोमुखबेरिया क्षेत्र के हिन्दुओं को पहले लाल झण्डा उठाये हुए मुस्लिमों का सामना करना पड़ता था, अब उन्हे तृणमूल के झण्डे उठाये हुए मुस्लिम अपराधियों को झेलना पड़ता है…। कुल मिलाकर इन 16 जिलों में हिन्दुओं की स्थिति बहुत विकट हो चुकी है, जहाँ-जहाँ वे संघर्ष कर सकते हैं, अपने स्तर पर कर रहे हैं…। 30 साल तक इन अपराधियों को वामपंथ से संरक्षण मिलता रहा, अब तृणमूल कांग्रेस से मिल रहा है… तो इन स्थानीय हिन्दुओं की स्थिति "दो पाटों के बीच" फ़ँसे होने जैसी है…।
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मामले की समूची पृष्ठभूमि को ढंग से समझने के लिए निम्नलिखित लिंक्स वाले लेख अवश्य पढ़ियेगा…
1) लाल झण्डे का इस्लाम प्रेम विकृत हुआ -http://blog.sureshchiplunkar.
2) पश्चिम बंग में बजरंग बली की मूर्ति प्रतिबन्धित -http://blog.sureshchiplunkar.
3) ममता बैनर्जी का सेकुलरिज़्म -http://blog.sureshchiplunkar.
स्रोत :- http://bengalspotlight.
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