Friday, December 9, 2011

Sabrimala Pilgrimage, Pseudo-Secularism, Kerala Tourism


जानबूझकर उकसाने वाली कार्रवाईयाँ और समुचित जवाब – दो घटनाएं…


मित्रों, केरल में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली सबरीमाला यात्रा प्रारम्भ हो चुकी है, इस अवसर पर लाखों हिन्दू श्रद्धालु सबरीमाला की कठिन यात्रा करते हैं, एवं कठोर तप-नियमों का पालन भी करते हैं। परन्तु केरल में पिछले 10 वर्ष के दौरान जिस प्रकार “जिहाद” और “क्रूसेड” का प्रभाव बढ़ रहा है, छोटी-छोटी घटनाओं के द्वारा हिन्दुओं के लिए “संदेश” दिये जा रहे हैं… ऐसी ही दो घटनाएं पेश हैं…

पहली घटना इस प्रकार है –

तमिलनाडु से सबरीमाला यात्रा में आये हुए दो श्रद्धालुओं को 18 नवम्बर के दिन पुन्नालूर के पास एक दुकानदार ने अपने कर्मचारियों के साथ मिलकर पीट दिया। ये दोनों श्रद्धालु उस होटल मालिक से गैरवाजिब रूप से अत्यधिक महंगी रखी गई खाने-पीने की वस्तुओं के बारे में पूछताछ कर रहे थे। दोनों श्रद्धालुओं को चोटें आईं और उन्हें पुनालूर के अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, पिछले साल भी इसी स्थान पर श्रद्धालुओं के साथ मारपीट की गई थी, जब श्रद्धालुओं ने होटल में बनने वाले शाकाहारी पदार्थों के साथ माँसाहारी पदार्थ को देख लिया था, और आपत्ति उठाई थी।

असल में सबरीमाला यात्रा के दौरान जुटने वाली भीड़ को देखते हुए दुकानदारों ने मनमाने भाव वसूलना शुरु कर दिए हैं, लेकिन इसका कारण महंगाई अथवा “धंधेबाजी” नहीं है। हकीकत यह है कि सबरीमाला यात्रा के सीजन में हिन्दुओं की बढ़ी हुई आस्था, हिन्दुओं के प्रचार-प्रसार एवं हिन्दू जीवनशैली के बढ़ते प्रभाव को देखकर “जेहादी” और “क्रूसेडर” परेशान हो जाते हैं। वे यह बात नहीं पचा पाते कि इतने जोरदार प्रयासों के बावजूद प्रतिवर्ष सबरीमाला में श्रद्धालुओं की संख्या क्यों बढ़ रही है? पूरे यात्रा मार्ग और आसपास के कस्बों में मछली, माँस, अण्डे इत्यादि के माँसाहारी खाद्य सामग्री बनाने वाले होटलों की आमदनी में इस दौरान भारी गिरावट आ जाती है, क्योंकि जो श्रद्धालु इन माँसाहारी पदार्थों को खाते हैं, वे भी लगभग 2 माह तक इनका त्याग कर देते हैं। इस भारी नुकसान का बदला, ये होटल वाले पानी से लेकर चावल तक के दामों में मनमाने तरीके से भारी बढ़ोतरी करके वसूलते हैं, जिसे लेकर आये दिन श्रद्धालुओं से इनका विवाद होता रहता है।

इस घटना के पश्चात विश्व हिन्दू परिषद एवं स्थानीय हिन्दू ऐक्यवेदी ने सभी श्रद्धालुओं से अनुरोध किया है कि वे सिर्फ़ उन्हीं होटल वालों से सामान खरीदें, जहाँ इस बात का स्पष्ट उल्लेख और सख्त पालन हो कि उनके यहाँ “सिर्फ़” शाकाहारी भोजन मिलता है।

कहाँ तो एक ओर अमरनाथ यात्रा के समय देश के विभिन्न हिस्सों से सिख और जैन मारवाड़ी बन्धु समूचे यात्रा मार्ग पर यात्रियों को मुफ़्त में लंगर-भोजन करवाते हैं, और कहाँ एक ओर सबरीमाला की यात्रा में श्रद्धालुओं से अधिक भाव लेकर उन्हें लूटा जा रहा है… और यह सिर्फ़ होटल और लॉज वालों तक ही सीमित नहीं है, प्राप्त सूचना के अनुसार बस ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर भी एक “वर्ग विशेष” का कब्जा है एवं वे सबरीमाला के हिन्दू यात्रियों से मनमाना किराया वसूलते हैं और अभद्रता भी करते हैं…। इस घटनाक्रम का एक पहलू यह भी रहा कि मारपीट और श्रद्धालुओं के घायल होने की खबर के पश्चात हिन्दू संगठनों ने सड़क किनारे चल रहे उस अवैध होटल को तहस-नहस कर दिया, जिसके पश्चात सरकार ने मनमाने दामों पर लगाम लगाने का फ़ैसला किया है…।


दूसरी घटना भी हिन्दुओं को जानबूझकर उकसाने वाली है -

कुछ समय पहले इसी ब्लॉग पर आपने “मुथूट फ़ायनेंस कम्पनी द्वारा सिन्दूर-बिन्दी पर प्रतिबन्ध” लगाने वाले सर्कुलर के बारे में पढ़ा था (http://blog.sureshchiplunkar.com/2011/09/muthoot-finance-anti-hindu-circular-ban.html), प्रस्तुत घटना भी इसी से मिलती जुलती है। 


जैसी की परम्परा है सबरीमाला के भक्तगण इस पवित्र उत्सव एवं पूजा के दौरान काले कपड़े अथवा काली लुंगी या धोती धारण करते हैं। चलाकुडी स्थित एक ईसाई संस्था, “निर्मला कॉलेज” ने उन सभी छात्रों को एक नोटिस जारी करके कहा कि कोई भी छात्र काली धोती या काली लुंगी पहनकर कॉलेज नहीं आ सकता। कुछ छात्रों ने इस नोटिस की अवहेलना की तो उन पर भारी जुर्माना ठोंका गया जबकि कुछ छात्रों को कॉलेज से निकालने की धमकी दी गई। हिन्दू छात्रों पर इस खुल्लमखुल्ला प्रतिबन्ध वाले सर्कुलर पर प्रिंसिपल सजीव वट्टोली के हस्ताक्षर हैं। इस सर्कुलर का वाचन सभी छात्रों के समक्ष जानबूझकर सार्वजनिक रूप से जोर से पढ़ा गया।

जब इस घटना का पता हिन्दू ऐक्यवेदी संगठन को लगा, तो उन्होंने कॉलेज प्रबन्धन का घेराव और धरना किया, जिसके बाद कॉलेज प्रशासन ने उन छात्रों की पेनल्टी फ़ीस वापस की तथा जिन्हें कॉलेज से बाहर करने का नोटिस दिया गया था, वह भी वापस लिया गया…।

इस प्रकार की घटनाएं अब केरल, पश्चिम बंग और असम में आम हो चली हैं। चूंकि हिन्दुओं में “नकली सेकुलरों” और “जयचन्दों” की भरमार है, इसलिए उन्हें ऐसी घटनाएं “छोटी-मोटी”(?) प्रतीत होती हैं, लेकिन यदि ध्यान से देखें तो ऐसी कार्रवाईयों और निर्देशों के जरिए हिन्दुओं को कुछ “स्पष्ट संदेश” दिये जा रहे हैं।

मुथूट फ़ायनेंस वाले मामले में डॉ स्वामी द्वारा कम्पनी के प्रबन्धक को जब कोर्ट केस करने की धमकी दी, तब कहीं जाकर सिन्दूर-बिन्दी पर प्रतिबन्ध वाले सर्कुलर को वापस लिया गया…। हालांकि इन दोनों घटनाओं में भी हिन्दू संगठनों द्वारा त्वरित कार्रवाई करके मामला सुलझा लिया, लेकिन “नीयत” का इलाज कैसे होगा?
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नोट :- यदि सोनिया गाँधी की NAC द्वारा पोषित “साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा बिल 2011” नामक काला कानून पास हो गया, तो ऊपर उल्लिखित घटना में होटल का मालिक, उन श्रद्धालुओं को पीटता भी और उन्हीं पर केस भी दर्ज करवाता, जिसमें उनकी जमानत भी नहीं होती। कुम्भकर्ण रूपी मूर्ख हिन्दुओं को यदि इस “ड्रेकुला कानून” के बारे में अधिक से अधिक जानना हो तो इस लिंक पर जा सकते हैं

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