Friday, November 30, 2012

भविष्य : शिवसेना और महाराष्ट्र की राजनीति का



शिवसेना के संस्थापक और उस संगठन के सर्वश्रेष्ठ प्रभावी नेता श्री बाळासाहब ठाकरे का १७ नवंबर को निधन हुआ. उनके कद काउनकी ताकद का और उनके समान लाखों अनुयायीयों पर धाक रखने वाला दूसरा नेता शिवसेना के पास नहींयह सर्वमान्य है. इसमें विद्यमान नेतृत्व की निंदा नही. केवल वस्तुस्थिति का निदर्शन है.

परिवारवाद
व्यक्ति केन्द्रित संगठन हो या राजनीतिक पार्टीसर्वोच्च पद पर की व्यक्ति के जाते हीऐसे प्रश्‍न निर्माण होना स्वाभाविक मानना चाहिए. इस कारण पुराने राजघरानों के समानपरिवारवाद पर चलने वाली पार्टिंयॉंजहॉं तक हो सकेविद्यमान नेता अपने सामने हीअपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति निश्‍चित कर देता है. पंजाब मेंअकाली दल के नेता मुख्यमंत्री प्रकाशसिंग बादल नेअपने पुत्र को उपमुख्यमंत्री बनाकर ऐसी ही व्यवस्था कर दी है. मुलायम सिंह ने सीधे अपने पुत्र को ही मुख्यमंत्री बना दिया. लालू प्रसाद यादव ने पत्नी को ही मुख्यमंत्री बनाया था. द्रविड मुन्नेत्र कळघम के सर्वेसर्वा करुणानिधि के दोनों पुत्र होनहार है. उनमें से एक केन्द्र सरकार में मंत्री भी है. वह करुणानिधि का ज्येष्ठ पुत्र है. लेकिन करुणानिधि का झुकावछोटे स्टॅलिन की ओर है. करुणानिधि हैतब तक सब ठीक चल भी सकता है. लेकिन उनके बाद संघर्ष अटल है. यह सब छोटे मतलब प्रादेशिक पार्टिंयों के उदाहरण है. लेकिन जो सबसे पार्टी के रूप में जानी जाती हैवह कॉंग्रेस भी परिवारवाद की ही पुरस्कर्ता है. श्रीमती इंदिरा गांधीराजीव गांधीसोनिया गांधी इस परंपरा के अनुसारअब राहुल गांधी का अनौपचारिक ही सहीराज्यारोहण-विधि हो चुका है और देश भर के कॉंग्रेसियों ने उसे मान्यता भी दी है. बाळासाहब ठाकरे ने भी उनके पुत्र उद्धव ठाकरे को उनकी पार्टी का कार्याध्यक्ष बनाकर उसी परंपरा का पालन किया. इतना ही नहींउद्धव ठाकरे के पुत्र - आदित्य को शिवसेना के युवकों के संगठन के मूर्धन्य स्थान पर बिठाया.

मनसेकी ताकद
इस स्थिति में शिवसेना के भविष्य के बारे में चिंता करने या उस प्रश्‍न पर विचार करने का प्रयोजन होने का कारण ही नहीं होना चाहिए. लेकिन प्रयोजन है. कारणठाकरे परिवार के हीबाळासाहब के सगे भतिजे राज ठाकरे ने बाळासाहब के होते हीउद्धव ठाकरे का नेतृत्व मानने को नकार दिया. बाळासाहब जैसे प्रचंड ताकदवान नेता की इच्छा के सामने गर्दन न झुकाकरउन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नाम से नई पार्टी बनाईऔर २००९ में हुए विविध स्तरों के चुनावों में शिवसेना की परवाह किये बिना अपनी शक्ति प्रकट की. महाराष्ट्र राज्य विधानसभा में मनसे के १३ विधायक है. २८८ की विधानसभा में १३ यह लक्षणीय संख्या नहींकोई ऐसा कह सकता है. लेकिन बाळासाहब के राजनीति में सक्रिय रहते मनसे इस संख्या तक पहुँचीयह उल्लेखनीय. उसके बाद हुए नगर पालिका और महानगर पालिका के चुनावों में भी मनसे ने अपनी ताकद दिखाई है. मुंबईठाणेनासिक,औरंगाबाद महापालिकाओं में की मनसे की ताकद को दुर्लक्षित नहीं किया जा सकता. राज ठाकरे ने यह जो करिष्मा कियावैसा प्रकाशसिंह बादल का भतिजा नहीं कर पाया. उनका पूरा नाम मुझे याद नहीं. लेकिन उनके नाम के अंत में मान’ है. मान भी अकाली दल से अलग हुए है. अलग होकर उन्होंने भी चुनाव लड़ालेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. इस कारण वे सांप्रत पंजाब की राजनीति में उपेक्षित है. बाळासाहब ठाकरे के बाद मनसे की ताकद और बढ़ेगी. और मनसे की ताकद बढ़ने का अर्थ है शिवसेना की ताकद घटना.

एकीकरण
क्या शिवसेना और मनसे एक साथ आएगीयह प्रश्‍न पूछा जा सकता है. वह एकदम अप्रस्तुत नहीं. बाळासाहब ठाकरे की अंतिम बिमारी के समयउसी प्रकार उद्धव ठाकरे पर हुई शस्त्रक्रिया के समय राज ठाकरेसारा विरोध भूलकर उनसे भेट करने गये थे. बाळासाहब के अंतिम समय में वे उद्धव ठाकरे के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे. उनकी इस कृति को क्या राजनीति की चाल मानेऐसा प्रश्‍न पूछा जा सकता है. मेरे मतानुसार वह राजनीति की चाल नहीं होनी चाहिएहोगी भी नहीं. लेकिन राज ठाकरे के इस वर्तन सेउनका कद बड़ा हुआ हैयह निश्‍चित. इस प्रकार मन का बड्डपन दिखाने वाले राज ठाकरे उनकी पार्टी शिवसेना में विलीन कर स्व. बाळासाहब की आत्मा को आनंद देगेयह प्रश्‍न अधिक महत्त्व के है. ऐसा एकीकरण हो सकता है. लेकिन वह राज ठाकरे के नेतृत्व में ही होगाउद्धव ठाकरे के नेतृत्व में नहीं. स्वयं उद्धव ठाकरे और मनोहर जोशीरामदास कदमसंजय राऊत जैसे शिवसेना के ज्येष्ठ नेताओं को क्या यह मान्य होगायह महत्त्व का प्रश्‍न है. लेकिन शिवसेना का नाम और प्रतिष्ठा टिकाकर रखनी होगी तो इसके अलावा अन्य कोई मार्ग नहींऐसा मुझे लगता है.

समझौते की संभावना
यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए किउद्धव ठाकरे की तबीयत अपेक्षाकृत सुदृढ नहीं है. दो बार हृदय पर ऍन्जोप्लास्टी’ हुई है. उनकी आयु अधिक नहीं हैलेकिन इस हृदय विकार ने उनकी कार्यशक्ति को निश्‍चित ही बाधित किया होगा. अपने स्वास्थ्य की इस स्थिति मेंउद्धव ठाकरेदुय्यमत्व स्वीकार कर क्या राज ठाकरे के हाथों पार्टी के सूत्र सपूर्द करेगेयह प्रश्‍न हैऔर वह शिवसेना के भविष्य मतलब नाम और प्रभाव से भी जुड़ा है. दोनों पार्टियॉं आज के समान ही अलग-अलग रही और २०१४ के विधानसभा के या लोकसभा के चुनाव में मनसे ने शिवसेना को मात दी तो आश्‍चर्य नहीं. अलग-अलग रहकर भी २०१४ का विधानसभा का चुनाव लड़ा जा सकता है. और दोनों मिलकर सौ के करीब सिटें जीत पाईतो सत्ता के लिए वे एक भी आ सकते है. लेकिन यह सुविधा के लिए किया समझौता हो सकता हैहृदय से एक होना नहीं. इस कारण वह शक्तिसंपन्नता का आलंबन भी नहीं हो सकेगा.

महागठबंधन का भविष्य
बाळासाहब ठाकरे के निधन के बाद निर्माण होने वाली परिस्थिति का परिणाम महाराष्ट्र की संपूर्ण राजनीति पर भी हो सकता है. महाराष्ट्र में शिवसेना,भाजपा और रामदास आठवले की रिपाइं का महागठबंधन है. यह महागठबंधन शक्तिशाली है. नगरपालिका और महानगर पालिका के चुनावों मेंइस महागठबंधन का अपेक्षाकृत प्रभाव दिखाई नहीं दियालेकिन विधानसभा के चुनाव में वह दिखाई दे सकता है. महापालिका के चुनाव बड़े शहरों के संदर्भ में थे. विधानसभा के चुनावों में ग्रामीण क्षेत्र को अधिक महत्त्व होगाइसलिए ही रिपाइं का साथ शिवसेना-भाजपा गठबंधन को उपकारक सिद्ध होगा,इसमें कोई संदेह नहीं. इसमें रिपाइं का भी लाभ है. लेकिन शिवसेना का नेतृत्व राज ठाकरे के पास गयातो क्या रिपाइं गठबंधन के साथ रहेगीयह प्रश्‍न है. गठबंधन में मनसे को समाविष्ट करने के लिए आठवले का विरोध है. कारण उन्हें ही पता होगा. लेकिन विरोध हैयह स्पष्ट है. मनसे को गठबंधन में शामिल करेऐसा भाजपा के शक्तिशाली नेताओं का मत है. अभी तकसंपूर्ण भाजपा ने इस बारे में निश्‍चित अधिकृत भूमिका नहीं ली है. लेकिन वह भूमिका पार्टी को लेनी ही होगी. राज ठाकरे के हाथ ही शिवसेना का नेतृत्व आयातो फिर विचार करने का प्रश्‍न ही नहीं. कारणगठबंधन शिवसेना के साथ है व्यक्ति के साथ नहीं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मनसे अलग ही रहीतो भाजपा की नीति क्या होगीमनसे की आज की शक्तिऔर बाळासाहब ठाकरे के निधन के बाद उस शक्ति में बहुत बड़ी मात्रा में वृद्धि होने की संभावना ध्यान में लेते हुएभाजपा नेशिवसेना को छोडकरमनसे के साथ गठबंधन करने की संभावना नकारी नहीं जा सकती.

सत्तारूढ गठबंधन में खटपट
भाजपा और मनसे का गठबंधन प्रभावी हो सकता है. कॉंग्रेस और राष्ट्रवादी कॉंग्रेस गठबंधन में चल रही खटपट की पार्श्‍वभूमि पर वह अधिक प्रभावी सिद्ध होगा. कॉंग्रेस और राष्ट्रवादी कॉंग्रेस के बीच आज जो अ-स्वस्थता का वातावरण हैउसका परिणाम २०१४ के लोकसभा के चुनाव पर नहीं भी होगा. वे लोकसभा के चुनाव एक होकर लड़ेंगे. शरद पवार गठबंधन नहीं टूटने देंगे. लेकिन यह एकता लोकसभा के चुनाव के बाद चार-पॉंच माह में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में नहीं दिखाई देगी. शायद गठबंधन कायम रहेगा. लेकिन दोनों के प्रयास एक-दूसरे के पॉंव खीचने के ही रहेंगे. अब तक,संख्या कुछ भी होलेकिन मुख्यमंत्री कॉंग्रेस का ही रहेगाइसे राष्ट्रवादी कॉंग्रेस ने मान्यता दी है. किंतु इसके बाद यह संभव होगाऐसे संकेत नहीं दिखाई देते. जिसके विधायक अधिक उसका मुख्यमंत्रीयह समझौते का सूत्र हो सकता है. इस परिस्थिति मेंअपने विधायक अधिक संख्या में चुनकर आएइस सकारात्मक रणनीति के साथ हीदूसरे के विधायकों की संख्या अपने विधायकों की संख्या से कम कैसे रहेगीयह नकारात्मक रणनीति भी कार्यरत रहेगी ही. इस परिस्थिति में मनसे-भाजपा गठबंधन को सत्ता प्राप्त करने का मौका मिल सकेगा. कुछ अघटित होकरशिवसेनामनसे और भाजपा का गठबंधन हुआ और उसमें आठवले की रिपाइं भी शामिल हुईतो २०१४ में इस गठबंधन की सरकार स्थापन होने की संभावना बहुत अधिक है.

भविष्य
यह सब संभावनाए और प्रश्‍न बाळासाहब के निधन के कारण चर्चा में आए है. उनके निश्‍चयात्मक उत्तर दिए जाने की स्थिति आज नहीं. कुछ समय राह देखनी होगीउसके बाद ही इन प्रश्‍नों के उत्तर क्रमश: स्पष्ट होते जाएगे. इन सब संभावनाओं और प्रश्‍नों पर ही शिवसेना का भविष्य निर्भर है. केवलशिवसेना’ इस नाम का ही नहींशिवसेना के नेतृत्व के पदों पर जो लोग आरूढ हैंउनका भी सियासी भविष्य इस पर ही निर्भर होगा. तोकुछ समय राह देखते है.


मा. गो. वैद्य
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)      
                                    babujivaidya@gmail.com

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