Tuesday, April 5, 2011

क्यों चैत्र प्रतिपदा से शुरू होता है हिन्दू नववर्ष?



 
 
हिन्दू पंचांग का चैत्र माह दो ऋतुओं का मिलन काल होता है। इस माह पतझड के मौसम की बिदाई होती है और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को ही बसंत ऋतु के आगमन का पहला दिन होता है। इस समय से दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है। सभी पेड़-पौधे व वनस्पतियां नए पत्ते, फूलों की खुशबू और रंग से भरे होते हैं। प्रकृति नया रूप लेती है। सारी प्रकृति शक्ति रुपा दिखाई देने लगती है। इसलिए इस माह में शक्ति उपासना का भी बहुत महत्व है। प्रकृति में चारों ओर हरियाली और लालिमा नए जीवन संदेश लेकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है। प्रकृति में बदलाव से प्राणी जगत भी आलस्य व दरिद्रता से मुक्त होकर उमंग और उत्साह से भर जाते हैं।

इसी चैत्र माह की प्रतिपदा यानी पहले दिन से नववर्ष की शुरूआत होने के कारण अनेक लोगों की जिज्ञासा होती है कि जब हिन्दू पंचाग के अनुसार चंद्रमास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है, तो फिर संवत्सर का आरंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष से क्यों? इसका उत्तर शास्त्र मुताबिक यही है कि कृष्णपक्ष में मलमास आने की संभावना होती है। विधान अनुसार मलमास में शुद्ध और शुभ काम नहीं किए जाते, जबकि चैत्र शुक्ल पक्ष इनके लिए शुभ माना जाता है।

हिन्दू माह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस चन्द्रकला से जीवन के मुख्य आधार पेड-पौधों को जीवनदायी रस प्राप्त होता है, जो औषधियों और वनस्पतियों के रूप में प्राणियों के तन व मन के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है़, इसलिए भी इस दिन से वर्ष का आरंभ शुभ माना गया है।

इसके अलावा मान्यता है कि ब्रह्मदेव ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। इस भाव से कि सृष्टि निरंतर प्रकाश यानि सृजन की ओर बढ़े। उस काल में इसे प्रवरा यानि सर्वश्रेष्ठ तिथि माना गया। इसकी श्रेष्ठता और पवित्रता के कारण ही आज भी अनेक धार्मिक, सामाजिक, लोक व्यवहार और शासकीय महत्व के कार्य इसी तिथि से शुरु होते हैं।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही सतयुग का प्रारंभ माना जाता है। यह युग कर्म,कर्तव्य और सत्य को जीवन में अपनाकर आगे बढऩे का प्रतीक है। यह दिन भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का भी माना जाता है। साथ ही ब्रहृमा द्वारा सृष्टि आरंभ भी इसी दिन से मानने के कारण इस तिथि से संवत्सर की शुरूआत मानी जाती है

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