Tuesday, April 12, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ गुरु-गोविन्द दोनों मैदान में


[लालमिर्ची] भ्रष्टाचार के खिलाफ गुरु-गोविन्द दोनों मैदान में





अनिल सौमित्र
भ्रष्टाचार के खिलाफ गोविन्दाचार्य और गुरुमूर्ति फिर मैदान में हैं । बाबा रामदेव ने गुरु-गोविन्द दोनों को भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम मे अपना संरक्षण दिया है। उनके साथ हैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री एम.एन. वेंकटचेलैया और न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा, जनता पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी, आईबी के पूर्व निदेशक अजीत डोबाल, वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक और भीष्म अग्निहोत्री जैसे विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गज । अन्ना हजारे, किरण बेदी, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, राम जेठमलानी, अरविंद केजरीवाल जैसे सामाजिक, कानूनी और प्रशासनिक क्षेत्र के अनुभवी लोग पहले ही हल्ला बोल चुके हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव श्री सुभाष सी कश्यप, पत्रकार श्री एम.डी. नलपत, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण कुमार एवं पूर्व राजदूत सतीशचन्द्र, पूर्व प्रशासक भूरेलाल और बी. आर. लाल एवं सी. बी. आई के पूर्व निदेशक श्री जोगिन्दर सिंह, अमेरिका के कर सलाहकार श्री डेविड स्पेंसर, रोनाल्ड लोमे, नुरिआ मोलिना ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम में साथ देने की इच्छा जाहिर की है।
30 जनवरी को नयी दिल्ली के रामलीला मैदान मे शायद पहली बार बिना किसी राजनैतिक पार्टी के सहयोग अथवा आह्वान के बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऎसा हल्ला बोल हुआ। इसमे जस्टिस संतोष हेगड़े, जे.एम .लिंगदोह, स्वामी अग्निवेश तथा आर्चबिशप विन्सेंट एम. कोंसेसाओ सहित तमाम संगठनों, विचारों और क्षेत्रों के लोग एक मंच पर आये । जन लोकपाल बिल पर सरकार और समाज आमने-सामने है. सोनिया-मनमोहन लोकपाल बिल पर मनमानी चाहते है । लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने साफ कर दिया है कि जन लोकपाल बिल वही होगा जिसका मसौदा सामाजिक क्षेत्र के लागों ने तैयार किया है । इसी को लेकर वे 5 अप्रैल को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन कर रहे है. उनके समर्थन मे देशभर के लोग उपवास रखेंगे और भ्रष्टाचार के खिलाफ संकल्प लेंगे.
राजनीतिक विचारक और स्वदेशी चिंतक गोविन्दाचार्य ने भी देश की नब्ज समझ ली है. वर्षो की संचित ताकत को वे इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम मे झोंक देना चाहते है। देश का हाल बेहाल है। आमजन लूट-पिट रहा है. राजनेता, उद्दोगपति और नौकरशाही माला-माल है। राजनीतिक दल चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष – गलबहिया खेल रहे है। विडम्बना यह है कि सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री के कार्यकाल मे सर्वाधिक भ्रष्टाचार है. प्रधानमंत्री अर्थशास्त्र के विद्वान है, लेकिन देश महंगाई से त्रस्त है। आम नागरिकों का धैर्य टूट गया है. गोविन्दाचार्य समझ गये है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हथौडा आजमाने का वक्त आ गया है। 1 और 2 अप्रैल को दिल्ली के विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउंडेशन में दुनिया भर से दर्जनों और देशभर से सैकडों सामाजिक इकट्ठा हुए। लोग आये तो थे सेमीनार में, लेकिन जाते-जाते "भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा" बनाने के संकल्प करते गये। योग गुरु स्वामी रामदेव के संरक्षण में बने इस मोर्चे के संयोजक के. एन. गोविन्दाचार्य एवं सह- संयोजक आईआईएम बेंगुलुरु के प्रो. श्री आर. वैद्यनाथन और श्री भूरे लाल होंगे। श्री एस. गुरुमूर्ति, श्री अजित डोबाल, श्री वेद प्रताप वैदिक और श्री भीष्म अग्निहोत्री इस मोर्चे सदस्य होंगे। यही समिति भ्रष्टाचार के विरोध में बनने वाली सारी योजनाओं और रणनीतियों का खाका तैयार करेगी। जल्द ही राज्यों में भी इस मोर्चे की ईकाइयां गठित कर दी जायेंगी। स्वामी रामदेव जी ने 2 दिन के सेमीनार के अंत में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान करते हुए इस विषय से जुड़े प्रतिबद्ध व्यक्तियों और संघठनो से अपील की कि वे भी अपनी-अपनी विचारधाराओं से ऊपर उठ कर इस जंग में शामिल हो।
गौरतलब है कि विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउन्डेशन के तत्वावधान में ‘‘शासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही : भारतीय परिपेक्ष्य एवं अन्तरराष्ट्रीय अनुभव’’ विषय पर दो दिवसीय सेमीनार के बहाने यह सब हुआ। दोनों दिन राजनीति, खुफिया, अर्थशास्त्र और सामाजिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या के स्वरुप, पहलू और परिणाम पर गहन विचार किया।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री एम.एन. वेंकटचेलैया ने कहा कि शासन का उत्तरदायित्व प्रधानमंत्री का होता है । प्रधानमंत्री जैसा चलेंगे वैसा ही देश चलेगा । वर्तमान में सरकारों के पास न तो दृष्टि और न ही ध्येय । दृष्टि और ध्येय से ही जनकल्याण की भावना उत्पन्न होती है । उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और काले धन का मामला तो संसद कानून बनाकर चुटकियों में हल कर सकती है । जनता पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि काला धन और भ्रष्टाचार देश के सामने एक बड़ा खतरा है। श्री एस. गुरुमूर्ति ने कहा कि भ्रष्टाचार से पैदा हुआ करोड़ों रू. विदेशों में जमा है। यह पैसा हमारे देश में हथियार और नशीले पदार्थों के रूप में आता है । विदेश की बात तो छोड़ें, देश में ही एक नहीं अनेक हसन अली है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों एक्सपोज होने चाहिये। भ्रष्टाचार को दंडित होने के लिये इसका खुलासा बहुत जरुरी है। रुस की खुफिया एजेंसी केजीबी द्वारा राजीव गान्धी के परिवार को पैसा देना दस्तावेजो में मौजूद है, लेकिन सब चुप है।
गोविंदाचार्य ने कहा कि अभी सब कुछ खत्म नही हुआ है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में जिद्द और संकल्प चाहिये। देश में राजनीतिक व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठ चुका है। सत्ता पक्ष और विपक्ष का भेद खत्म हो चुका है। सरकार पर सत्ता लिप्सा, हिस्ट्रीशीटरों और धनबल की चादर चढ गई है। भारतीय राज्य, भारतीय लोगों के ही खिलाफ संघर्ष कर रहा है। अपराध और भ्रषटाचार का अन्तरराष्ट्री यकरण हो गया है। ऎसी स्थिति में हमें वाक् विलास से आगे की सोचना चाहिये। जाहिर है वे सेमीनार को आन्दोलन की शक्ल देना चाह्ते थे। वे जो चाहते थे वही हुआ। गोविन्दाचार्य चाह्ते है कि देश की समस्या का उपाय राजनीतिक और गैर-राजनीतिक दोनो मोर्चों पर हो। हालांकि उनके पास समय और संसाधन दोनो बहुत कम है। लेकिन वे अपनी ताकत बखूबी जानते है। इस मुहिम में आरएसएस उनके साथ है। बाबा रामदेव के संरक्षण से उन्हें एक बडी ताकत मिली है। जयप्रकाश आन्दोलन के सिपाही बेशक उनका साथ देंगे। भ्रष्टाचार ऎसा मुद्दा जो विचारधारा, दल और संगठन से परे हो गया है। इस मुहिम में कोई वैचारिक अडचन नहीं है। जयप्रकाश आन्दोलन के बाद एक बार फिर देश व्यवस्था परिवर्तन के लिये तैयार खडा है। सामाजिक आन्दोलनों के नेताओं ने मौके की नजाकत भांप ली है। इकट्ठा होने और देश को इकट्ठा करने की कवायद शुरु हो चुकी है। अन्ना की आवाज को गोविन्द ने हुंकार दी है। जनता पहले से ही कोपाकुल है। उसकी भृकुटि चढी हुई है। लेकिन इस बार सिर्फ सिंहासन खाली करने या भरने की नही, बल्कि व्यवस्था को झंकझोडने की, उसे नई व्यवस्था देने की बात है।
बहरहाल गोविन्दाचार्य के पास खोने को कुछ नही है। वे कई मोर्चों पर कवायद मे जुटे है। वे रचनात्मक, आन्दोलनात्मक और बौद्धिक तीनों ही आयामों पर प्रयोग कर रहे हैं। राजनीतिक तौर पर राष्ट्र्वादी मोर्चा, नये संविधान-सभा के गठन और शासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं के जुटान में उन्होंने साहसिक पहल की है। सिर्फ राजनैतिक मोर्चे पर ही अब दो तक दर्जन से अधिक छोटे-छोटे दल साथ आ चुके है। अगर सफल हुए तो इतिहास रच जायेंगे, असफल हुए तो भी रास्ता तो दिखा ही जायेंगे।

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