शातिर है संजीव भट्ट
चलिए चलते हैं मई १९९६ में ,गुजरात के पालनपुर पुलिस स्टेशन में एन डी पी एस एक्ट के तहत एक केस दर्ज किया गया जिसमे कहा गया था कि सुमेर सिंह नाम का एक व्यक्ति पालनपुर के होटल लाजवंती में पांच किलो अफीम का सौदा करने वाला है ,पुलिस तत्काल मौके पर पहुंची और होटल रजिस्टर से कथित तौर पर मिली जानकारी के आधार पर रूम न -५०३ में जा पहुंची ,दरवाजा खोला गया तो वहां कोई व्यक्ति नहीं मिला हाँ पुलिस के रिकार्ड के आधार पर १ किलो १५ ग्राम हेरोइन जरुर मिली। संजीव भट्ट उस वक्त पालनपुर के डीएसपी थे उनके आदेश पर एक टीम पाली, राजस्थान रवाना की गयी और फिर २ मई १९९६ को सुमेर सिंह को गिरफ्तार कर वापस गुजरात ले आया गया।
१४ दिन की रिमांड के बाद जब अभियुक्त को वापस सीजीएम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया तो एक अजीबोगरीब बात हुई ,जिस व्यक्ति को संजीव भट्ट ने अदालत के सामने पस्तुत किया था उसने बताया कि मै सुमेर सिंह एक वकील हूँ ,जो कभी पालनपुर आया ही नहीं जिस घर को मेरा घर बताया जा रहा है वो मेरा घर है ही नहीं, मेरा मकान मालिक के साथ विवाद भी चल रहा। जज ने १५ से ३० घंटे के भीतर शिनाख्त परेड कराये जाने का आदेश देते हुए अभियुक्त को सात दिन की और रिमांड दे दी |शिनाख्त परेड बुलाई गयी, लेकिन लाजवंती होटल के कर्मियों ने अभियुक्त की शिनाख्त होटल में रुके व्यक्ति के रूप में करने से साफ़ इनकार कर दिया। नतीजतन पुलिस ने कोर्ट में सुमेर सिंह की बात मान ली और उसे १० हजार रूपए के निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया।
संजीव भट्ट की कहानी यहाँ से ख़त्म नहीं होती ,यहीं से शुरू होती है। १७ अक्तूबर को सुमेर सिंह ने सीजीएम कोर्ट में एक अपील दाखिल की ,जिसमे बताया गया था कि पाली स्थित जिस घर में उसका चेंबर है है उस मकान के मालिक से उसका मुकदमा चल रहा है। दरअसल वो घर गुजरात हाई कोर्ट के जज के के जैन के सगे चाचा का है ,और ये लोग मुझ पर लगातार वो जगह खाली करने को कह रहे हैं ,जब मैंने मना किया तो जस्टिस आर आर जैन और संजीव भट्ट जो कि बहुत घनिष्ठ मित्र है (संजीव भट्ट की पत्नी भी जैन है )ने एक शातिराना चाल चली ,और मुझे ड्रग माफिया घोषित करने के लिए जस्टिस के के जैन के कहने पर मुझे भट्ट ने एन ड़ी पी एस के मामले में फंसा दिया |सबूत के तौर पर सुमेर सिंह ने कुछ आडियो टेप भी अदालत को दिए जिससे पृष्टि हुई कि संजीव भट्ट और के के जैन में प्रगाढ़ मित्रता ही नहीं पारिवारिक सम्बंध भी रहे हैं।
सुमेर सिंह ने अदालत को बताया कि संजीव भट्ट अपने जज मित्र के लिए मुझ पर लगातार दबाव बना रहे थे ,और अंत में मुझे इस मामले में जबरन गिरफ्तार भी कर लिया गया। इस मामले में अदालत के निर्देश पर तत्काल एक केस दर्ज किया गया जिसमे संजीव भट्ट जस्टिस आरआर जैन और उनके चाचा फुटरमल को अभियुक्त बनाया गया था, फुटरमल को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया इस मामले को संज्ञान में लेकर गुजरात बार एसोसिएशन ने जस्टिस आरआर जैन के खिलाफ निंदा प्रसताव भी पारित किया और तत्कालीन चीफ जस्टिस ए एन अहमदी को उनके खिलाफ कार्यवाही करने को भी पत्र लिखा ,लेकिन कार्यवाही तब हुई जब जस्टिस वर्मा मुख्य न्यायाधीश बने ,आर आर जैन को गुजरात से मद्रास हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया वहीँ संजीव भट्ट के खिलाफ विभागीय जांच शुरू हो गयी। संजीव भट्ट ने लगातार कोशिश की कि उसके खिलाफ चल रहा मामला राजस्थान से गुजरात स्थानांतरित हो जाए मगर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी एक न सुनी।
इस पूरे मामले में सुमेर सिंह ने अदालत को कुछ टेप सौंपे जिनमे साफ़ तौर पर जैन के चाचा फुटरमल और संजीव भट्ट की बातचीत मौजूद थी ,बाद में अदालत में संजीव भट्ट ने खुद कबूला कि उन्हें आर आर जैन लगातार फोन कर रहे थेऔर उनके तथा उनकी पत्नी के जैन दंपत्ति से अच्छे सम्बंध है। इस मामले में मिले रिकार्ड्स से ये भी जानकारी मिली कि जब सुमेर सिंह की गिरफ्तारी के बाद उसे छोड़े जाने के एवज में सुमेर सिंह के परिजन पाली स्थित जैन के मकान में बने चेंबर को खाली करने पर राजी हो गए ,तो पुलिस ने कोर्ट को सुमेर सिंह को छोड़ने जाने की दरख्वास्त कर दी।
By आवेश तिवारी 25/04/2011 12:26:00
फोटोग्राफी के शौक़ीन आई पी एस अधिकारी संजीव भट्ट का सुप्रीम कोर्ट में दिया गया हलफनामा कि मोदी मुसलमानों को सबक सिखाना चाहते थे ,मोदी के विवादस्पद व्यक्तित्व में एक और पैबंद लगाने का काम करेगा। लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद हाशिये पर रख दिए गए संजीव भट्ट कौन है, कैसा है इनका व्यक्तित्व? ये जानना भी फिलहाल बेहद जरुरी है।
चलिए चलते हैं मई १९९६ में ,गुजरात के पालनपुर पुलिस स्टेशन में एन डी पी एस एक्ट के तहत एक केस दर्ज किया गया जिसमे कहा गया था कि सुमेर सिंह नाम का एक व्यक्ति पालनपुर के होटल लाजवंती में पांच किलो अफीम का सौदा करने वाला है ,पुलिस तत्काल मौके पर पहुंची और होटल रजिस्टर से कथित तौर पर मिली जानकारी के आधार पर रूम न -५०३ में जा पहुंची ,दरवाजा खोला गया तो वहां कोई व्यक्ति नहीं मिला हाँ पुलिस के रिकार्ड के आधार पर १ किलो १५ ग्राम हेरोइन जरुर मिली। संजीव भट्ट उस वक्त पालनपुर के डीएसपी थे उनके आदेश पर एक टीम पाली, राजस्थान रवाना की गयी और फिर २ मई १९९६ को सुमेर सिंह को गिरफ्तार कर वापस गुजरात ले आया गया।
१४ दिन की रिमांड के बाद जब अभियुक्त को वापस सीजीएम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया तो एक अजीबोगरीब बात हुई ,जिस व्यक्ति को संजीव भट्ट ने अदालत के सामने पस्तुत किया था उसने बताया कि मै सुमेर सिंह एक वकील हूँ ,जो कभी पालनपुर आया ही नहीं जिस घर को मेरा घर बताया जा रहा है वो मेरा घर है ही नहीं, मेरा मकान मालिक के साथ विवाद भी चल रहा। जज ने १५ से ३० घंटे के भीतर शिनाख्त परेड कराये जाने का आदेश देते हुए अभियुक्त को सात दिन की और रिमांड दे दी |शिनाख्त परेड बुलाई गयी, लेकिन लाजवंती होटल के कर्मियों ने अभियुक्त की शिनाख्त होटल में रुके व्यक्ति के रूप में करने से साफ़ इनकार कर दिया। नतीजतन पुलिस ने कोर्ट में सुमेर सिंह की बात मान ली और उसे १० हजार रूपए के निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया।
संजीव भट्ट की कहानी यहाँ से ख़त्म नहीं होती ,यहीं से शुरू होती है। १७ अक्तूबर को सुमेर सिंह ने सीजीएम कोर्ट में एक अपील दाखिल की ,जिसमे बताया गया था कि पाली स्थित जिस घर में उसका चेंबर है है उस मकान के मालिक से उसका मुकदमा चल रहा है। दरअसल वो घर गुजरात हाई कोर्ट के जज के के जैन के सगे चाचा का है ,और ये लोग मुझ पर लगातार वो जगह खाली करने को कह रहे हैं ,जब मैंने मना किया तो जस्टिस आर आर जैन और संजीव भट्ट जो कि बहुत घनिष्ठ मित्र है (संजीव भट्ट की पत्नी भी जैन है )ने एक शातिराना चाल चली ,और मुझे ड्रग माफिया घोषित करने के लिए जस्टिस के के जैन के कहने पर मुझे भट्ट ने एन ड़ी पी एस के मामले में फंसा दिया |सबूत के तौर पर सुमेर सिंह ने कुछ आडियो टेप भी अदालत को दिए जिससे पृष्टि हुई कि संजीव भट्ट और के के जैन में प्रगाढ़ मित्रता ही नहीं पारिवारिक सम्बंध भी रहे हैं।
सुमेर सिंह ने अदालत को बताया कि संजीव भट्ट अपने जज मित्र के लिए मुझ पर लगातार दबाव बना रहे थे ,और अंत में मुझे इस मामले में जबरन गिरफ्तार भी कर लिया गया। इस मामले में अदालत के निर्देश पर तत्काल एक केस दर्ज किया गया जिसमे संजीव भट्ट जस्टिस आरआर जैन और उनके चाचा फुटरमल को अभियुक्त बनाया गया था, फुटरमल को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया इस मामले को संज्ञान में लेकर गुजरात बार एसोसिएशन ने जस्टिस आरआर जैन के खिलाफ निंदा प्रसताव भी पारित किया और तत्कालीन चीफ जस्टिस ए एन अहमदी को उनके खिलाफ कार्यवाही करने को भी पत्र लिखा ,लेकिन कार्यवाही तब हुई जब जस्टिस वर्मा मुख्य न्यायाधीश बने ,आर आर जैन को गुजरात से मद्रास हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया वहीँ संजीव भट्ट के खिलाफ विभागीय जांच शुरू हो गयी। संजीव भट्ट ने लगातार कोशिश की कि उसके खिलाफ चल रहा मामला राजस्थान से गुजरात स्थानांतरित हो जाए मगर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी एक न सुनी।
इस पूरे मामले में सुमेर सिंह ने अदालत को कुछ टेप सौंपे जिनमे साफ़ तौर पर जैन के चाचा फुटरमल और संजीव भट्ट की बातचीत मौजूद थी ,बाद में अदालत में संजीव भट्ट ने खुद कबूला कि उन्हें आर आर जैन लगातार फोन कर रहे थेऔर उनके तथा उनकी पत्नी के जैन दंपत्ति से अच्छे सम्बंध है। इस मामले में मिले रिकार्ड्स से ये भी जानकारी मिली कि जब सुमेर सिंह की गिरफ्तारी के बाद उसे छोड़े जाने के एवज में सुमेर सिंह के परिजन पाली स्थित जैन के मकान में बने चेंबर को खाली करने पर राजी हो गए ,तो पुलिस ने कोर्ट को सुमेर सिंह को छोड़ने जाने की दरख्वास्त कर दी।
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