खानाबदोशों के लिए आधुनिक शिक्षा संकुल का सरसंघचालक जी ने किया लोकार्पण
खानाबदोशों के लिए ३८ एकड़ में आधुनिक शिक्षा संकुल
सरसंघचालक जी ने किया लोकार्पण
दिनांक १४ अप्रैल २०११देश के उपेक्षित, विस्मृत और खानाबदोश समाज को मुख्य प्रवाह में सम्मिलित कर,विकास का एक नया और गतिमान मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास कुछ सालों से महाराष्ट्र में ‘भटके-विमुक्त विकास परिषद आणि भटके विमुक्त विकास प्रतिष्ठान’ द्वारा चल रहा है। इस निरंतर प्रयास के फलस्वरूप, यमगरवाडी में (जिला उस्मानाबाद, महाराष्ट्र) ३८ एकड़ भूमि पर सुसज्ज विद्यासंकुल का लोकार्पण प. पू. सरसंघचालक डा. मोहनजी भागवत इनके करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। सामाजिक नवचेतना के दिशा में यह एक ‘चरण अंगद का’ है, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जिस पारधी समाज को, हमारे समाज ने कई वर्षों से तिरस्कृत, उपेक्षित भाव से देखा;उनपर गुनाहगार की मोहर लगायी, ऐसे समाज को, फिर से हिन्दू समाज के मुख्य धारा में लाने का यह एक सफल, अभिनव आणि विलक्षण प्रयास है। लोकार्पण के इस कार्यक्रम में मा. मोहनजी ने अत्यंत समर्पक शब्दों में उपिस्थत कार्यकर्ता एवम् हितचिंतक गण को उद्बोधित करके सेवा के कंटकाकीर्ण पथपर अग्रेसर होने हेतु दिशादर्शन और प्रोत्साहित किया।
यमगरवाडी बने सामाजिक परिवर्तन का तीर्थक्षेत्र : डा. मोहनजी भागवत
यमगरवाडी (जि. उस्मानाबाद): खानाबदोश एवं विमुक्तों के लिये शिक्षा संकुल बनाकर विकास की नींव रखनेवाली यमगरवाडी सामाजिक परिवर्तन का तीर्थक्षेत्र बने, ऐसी अपेक्षा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा मोहनजी भागवत ने यहाँ व्यक्त की। जिले के तुलजापुर तहसिल के यमगरवाडी गाँव में ‘भटके-विमुक्त विकास परिषद आणि भटके विमुक्त विकास प्रतिष्ठान’ द्वारा निर्मित इस शिक्षा संकुल एवं कर्मचारी निवास का लोकार्पण१४ अप्रैल को सरसंघचालक के हस्ते किया गया; उस समय आयोजित कार्यक्रम में वे बोल रहे थे।
"भारत स्वतंत्र होकर आज कई वर्ष हो चुके है, फिर भी खानाबदोश एवं विमुक्त समाज सब प्रकार की विकास प्रक्रियाओं से उपेक्षित ही रहा है। लेकिन यमगरवाडी में काम करनेवाले हमारे कुल के हिन्दू समाज कार्यकर्ताओं ने, सारा विश्व जिससे सबक ले ऐसा विलक्षण कार्य यहाँ खड़ा किया है। इसका लाभ इस समाज के बंधु उठाऐं और विकास का मार्ग अपनाऐं," ऐसा डा. मोहनजी भागवत ने कहा।
डा. बाबासाहब आंबेडकर की जयंती के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में पुना की बधिरीकरण विशेषज्ञ (अनेस्थेसिस्ट) डा. अलका मांडके प्रमुख अतिथि थी। खानाबदोश-विमुक्त विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष वैजनाथ लातुरे, यमगरवाडी प्रकल्प समिति के अध्यक्ष डा. अभय शहापुरकर, खानाबदोश-विमुक्त विकास परिषद के अध्यक्ष भि.रा.इदाते, प्रतिष्ठान के कार्यवाह गजानन दरणे, उपाध्यक्ष चंद्रकांत गडेकर, देवकाबाई शिंदे, नारायण बाबर,शिवराम बंडीधनगर, लक्ष्मण विभुते आदि मंच पर उपस्थित थे।
यमरवाडी का यह प्रकल्प जिले के उपेक्षित, विस्मृत और खानाबदोश समाज को शिक्षा के प्रवाह में लानेवाला एक अमृतकुंभ है। आज इस संस्था के कार्य का आलेख देखकर मुझे अत्यंत समाधान हुआ। समाज के उत्थान का व्रत लेकर यहाँ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता अत्यंत आत्मीयता से काम करते दिखते है। ऐसी संस्थाएँ चलाना आसान काम नहीं। रात-दिन कष्ट करने पड़ते है, तब ऐसा काम होता है। यहाँ के सब कार्यकर्ता समर्पण भाव से कार्य कर रहे हैं। इस कारण यहाँ ‘मैं’ की भावना की संभावना नहीं। जहाँ समर्पण भाव होता है वहाँ लाभ-हानि का हिसाब नहीं होता, इसी कारण ऐसे बड़े काम होते है, ऐसा भी डा. मोहनजी भागवत ने कहा।
इन बड़े कामों से संस्था चालकों एवं कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। इस कारण उनसे समाज की अपेक्षाऐं बढ़ना स्वाभाविक है। इतना काम हुआ, इस कल्पना से भावविभोर होकर इन कार्यकर्ताओं ने यही रूकना है उन्होंने सदैव आगे डग भरते रहना है। छोटी चींटी सतत चलते रहती है इसलिये वह निरंतर उद्योगी दीखती है, इसी कारण उसे नवीनता के अलग-अलग मार्ग भी मिलते है। गरुड का इसके विपरीत है। आकाश में ऊँचाई तक गोता लगाने की ताकत उसमें है लेकिन उसने गोता लगाया ही नहीं तो उसके उस सामर्थ्य का कोई लाभ नहीं, ऐसा समर्पक उदाहरण देते हुए डा. मोहनजी भागवत ने इस प्रकार कार्य करनेवाली संस्थाओं के कार्य की सफलता से मेरे जैसा कार्यकर्ता भी यहाँ आकर आत्मविश्वास कैसे हासिल करना, यह सिखते है, इन शब्दों में संस्था के कार्य का गौरव किया।
करीब आधे घंटे के भाषण में सरसंघचालकजी ने किसी भी राजनीतिक मुद्दे को ना छूकर भारत के सांस्कृतिक एवं सामाजिक तानेबाने की विस्तृत चर्चा की। ‘हम एक है’ यह भावना रखी तो असाध्य कोटी के कार्य भी सहज पूर्ण होते है, ऐसा बताते हुए डा. मोहनजी भागवत ने कहा कि, यह एकात्मता और अखंडता ही देश का आत्मा है। आज देश में ‘इंडिया’ की अवधारणा बढ़ रही है। लेकिन वह अपनी संस्कृति नहीं। इस कारण हमें उसकी आवश्यकता भी नहीं। हमें अपना ‘भारत’ ही निर्माण करना है उसके लिये यह एकता और अखंडता बनाये रखनी होगी। ये कार्यकर्ता समाज को उस दिशा में सक्रिय करे, ऐसा आवाहन उन्होंने किया।
शारीरिक कार्यक्रमों का मनोहारी प्रदर्शन करते हुए शिक्षा संकुल के छात्र
यह प्रकल्प देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुई हूँ, ऐसी भावना डा. अलका मांडके ने प्रकट की। यहाँ के विद्यार्थियों से बातचीत करते समय, उनका बर्ताव, अनुशासन, संपूर्ण कार्यक्रम में समय सीमा का रखा गया ध्यान - इन सब बातों का भी उन्होंने गौरवपूर्ण उल्लेख किया।
भि. रा. इदाते ने इस प्रकल्प के निर्माण कार्य का ब्यौरा दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से यह प्रकल्प आरंभ किया। ३८ एकड़ जमीन पर यह विद्या संकुल बनाया गया है। यहाँ २६ जातियों के प्रतिनिधि लेकर हमने विद्यार्थियों को शिक्षा के प्रवाह में लाने का प्रामाणिक प्रयास किया है। इस प्रकल्प के निर्माण में कई बाधाऐं आई, लेकिन मार्ग भी निकलते गए। आलोचना भी हुई, किंतु काम रूका नहीं, और अंत में हमने उद्दिष्ट साध्य किया, ऐसा उन्होंने बताया।
ध्यासपर्व का प्रकाशन
इस समय ‘ध्यासपर्व (वाटचाल २१ वर्षांची)’ इस ग्रंथ का प्रकाशन किया गया। साथ ही रेखा राठोड इस खिलाड़ी का और अन्य प्रतिभाशाली विद्यार्थी, पालक तथा कार्यकर्ताओं का सरसंघचालकजी के हाथों सत्कार भी किया गया। प्रास्ताविक डा. प्रा. सुवर्णा रावळ और आभार प्रदर्शन वैजनाथ लातुरे ने किया। पसायदान से कार्यक्रम का समापन हुआ।
इस कार्यक्रम में भूतपूर्व सांसद सुभाष देशमुख, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव सुजितसिंह ठाकुर, संगठन मंत्री प्रवीण घुगे, अड. अनिल काले, महादेल सरडे, श्रीकांत भाटे और विविध स्थानों से आये सामाजिक कार्यकर्ता, स्वयंसेवक उपस्थित थे।
सरसंघचालक ने तुलजाभवानी का दर्शन किया
तुलजापुर: यमगरवाडी के कार्यक्रम के लिये यहाँ आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहनजी भागवत ने गुरुवार (१४ अप्रैल) की सुबह तुलजाभवानी के मंदिर में जाकर देवी का दर्शन किया। इस अवसर पर मंदिर की व्यवस्थापन समिति की ओर से तहसिलदार व्यंकटराव कोळी ने देवी की प्रतिमा, शाल, फेटा देकर सरसंघचालकजी का सत्कार किया।
ज्ञात हो, हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की, यह देवी कुलदेवता थी। शिवाजी महाराज प्रायः इस मंदिर में आकर तुलजा भवानी से आर्शिवाद प्राप्त किया करते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रख्यात भवानी तलवार इसी देवी का प्रसाद है,ऐसा माना जाता है।
यमगरवाडी के शिक्षा प्रकल्प आज तक कई लोगों को आकर्षित किया है। कुछ समय पूर्व मीडिया में छपे हुए एक आलेख के कुछ अंश का अनुवाद
ग्रामीण शिक्षा
अविनाश शेषरे, दक्षिण महाराष्ट्र में के सोलापुर के समीप, यमगरवाडी गाँव में के एक छोटे निवासी स्कूल की सातवीं कक्षा में पढ़नेवाला विद्यार्थी मुझे बहिर्गोल और अंतर्गोल लेन्स की संकल्पना समझाकर बता रहा था! उसने एक रबर की एक घिसी स्लीपर ली। उसमें पाँच-छः समांतर छेद थे। उसने, उसमें शीतपेय पीने का स्ट्रा (नली) फसाया था। और अब वह प्रात्यक्षिक दीखाने के लिये तैयार था। उसने कहा- ”कल्पना करो की स्लीपर का यह तल लेन्स है और उसके छेद में फसाए स्ट्रा सूर्य की किरणे। मैं स्लीपर के इस तल को ऐसे मोड़ता हूँ की जिससे स्ट्रा का सिरा अंदर की ओर आता है; बहिर्गोल लेन्स ऐसे काम करती है। जब तल को विपरित दिशा में मोड़ता हूँ तो स्ट्रा का सिरा बाहर की ओर उठता है; यह बना अंतर्गोल।“ यह सब उसने मुझे मराठी में बताया। परंपरागत शिक्षा पद्धति से हटकर, इतने सहज तरीके से तो मैं आयआयटी में भी नहीं पढ़ा था!
अविनाश, पारधी और अन्य विमुक्त जाति के बच्चों के लिये यमगरवाडी में बनी निवासी शाला में पढ़ता है। इन जातियों में से कईयों को ब्रिटिशों ने ‘अपराधी जाति’ घोषित किया था, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिशों ने उपनिवेषवाद के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया था। आज भी,इन जातियों के लोग भयानक गरीबी और सामाजिक बहिष्कृत जीवन जी रहे हैं। उनमें शालेय शिक्षा का प्रसार भी बहुत कम है। इसका सीधा अर्थ यह नहीं की उनके दिमाग खाली है। यमगरवाडी की भेंट में मैंने अनुभव किया कि उनके बच्चों को उनके आसपास के वातावरण के बारे में गजब का ज्ञान है इन लड़कों और लड़कियों को स्थानिय झाड़ियों के औषधी गुणों की भलि-भांति जानकारी है। वे रात को आकाश में के तारों के नाम भी बता सकते है। शाला के एक छोटे कमरे में उन्होंने ‘विज्ञान शास्त्र प्रयोगशाला’भी बनाई है। इसमें कांच के बर्तन (जार) में विभिन्न जाति के साप, केकड़े, बिच्छु रखे है। उन्हें यहाँ के बच्चों ने ही पकड़ा है। अब ये बच्चें गाने, नृत्य और स्थानिय खेलों में अपनी उच्च प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं; और उनके जादू भरे हाथों से लकड़ी, माटी तथा घास से सुंदर वस्तुएँ बना रहे हैं। यह सब हमारी कल्पना के परे है।
अविनाश और उसके साथी भाग्यशाली है क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से स्थापित शाला में स्थान मिला है। इस शाला की स्थापना सामाजिक कार्यकर्ता गिरिश प्रभुणे ने की है। गिरीश प्रभुणे ने सामाजिक उत्थान का लक्ष्य रखकर लंबे समय से महाराष्ट्र में विमुक्त जातियों के लिये काम किया है। उनका यह काम देखते हुए उन्हें,आज इस काम के लिये सरकार की ओर से जिस प्रमाण सहायता मिलती है, उससे कही अधिक मिलनी चाहिये। मुझे संदेह है की, आज की जड़े जमा चुकी रूढ एवं कल्पनाशून्य प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा पद्धति ग्रामीण भारत के विभक्त समाज के बच्चों के लिये शिक्षा के द्वार खोलने में लाभदायक सिद्ध होगी
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